चैते वर्षा आई और सावन सूखा जाई।
एक बूंद जो चैत में परे सहसबूंद सावन की हरै।
घाघ! कहते हैं यदि चैत के महीने में वर्षा होगी
तो सावन के महीने में कम वर्षा होगी। यदि एक बूंद भी वर्षा की पड़ती है, तो
वह सावन की हजार बूंदों को समाप्त कर देती है।
माघ के ऊमष जेठ के जाड़, पहिला वर्षा
भरिगे ताल।
कहैंघाघ हम होई बियोगी, कुआ खोदि के
धोईहैं धोबी।।
घाघ! कहते हैं-यदि माघ के महिने में जाड़े के
बजाय गर्मी पड़े और जेठ में गर्मी के जगह जाड़ा पड़े व पहली वर्षा से तालाब भर
जाये तो समझ लेना चाहिए कि इस वर्ष इतना सूखा पड़ेगा कि धोबियों को भी कपड़े धोने
के लिए जल कुएं से खींचना पड़ेगा।
मंगल रथ आगे चलै, पीछे चले जो
सूर।
मन्द वृष्टि तब जानिये, पडती सगले धूर।।
इस कहावत में घाघ! ज्योतिष के अनुसार ग्रह-गोचर
देखकर, वर्षा की भविष्यवाणी कैसे करे बताते हैं, यदि ग्रह-गौचर में
मंगल आगे और सूर्य पीछे हो निश्चित ही सूखा पड़ता है।
आगे रवि पीछे चले, मंगल जो आषाड़।
तौ बरसे अनमोल हो, पृथ्वी आनन्द
बाढ़।
जिस वर्ष गौचर में सूर्य के पीछे मंगल रहते हैं
उस साल वर्षा खूब होती है और पृथ्वी पर आनन्द होता है।
माघ में जो बादर लाल घिरै, सांची
मानो पाथर परै।
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही
हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद
लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना
जाए।।
अर्थात् यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह
जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा
जाय।
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं
खाय।।
अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा
में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी
होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख
मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ
बहोरि।।
अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी
न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा
धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता
है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
दरअसल कृषक कवि घाघ ने अपने अनुभवों से जो निष्कर्ष
निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक मौसम विज्ञान की
निष्पत्तियों से कम उपयोगी नहीं हैं।
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