ज्योतिष समाधान

Wednesday, 27 July 2016

===सन्तानप्राप्ति के अजमाए हुए प्रयोग =====

सन्तान-प्राप्ति के लिए अचूक प्रयोग—-वंशाख्य कवच—-
अरुण उवाच-भगवन्, देव-देवेश! कृपया त्वं जगत्-प्रभो! वंशाख्य-कवचं ब्रूहि, मह्यं शिष्याम तेऽनघ! यस्य प्रभावाद् देवेश! वंशच्छेदो न जायते।

श्रीसूर्य उवाच- श्रृणु वत्स! प्रवक्ष्यामि, वंशाख्य-कवचं शुभं।
सन्तान-वृद्धिर्यात् पाठात्, गर्भ-रक्षा सदा नृणां।।

वन्ध्याऽपि लभते पुत्रं, काक-वन्ध्या सुतैर्युता।
मृत-गर्भा स-वत्सा स्यात्, स्रवद्-गर्भा स्थिर-प्रजा।।
अपुष्पा पुष्पिणी यस्य, धारणं च सुख-प्रसुः।
कन्या प्रजा-पुत्रिणी स्यात्, येन स्तोत्र-प्रभावतः।
भूत-प्रेतादि या बाधा, बाधा शत्रु-कृताश्च या।।
भस्मी-भवन्ति सर्वास्ताः, कवचस्य प्रभावतः।
सर्वे रोगाः विनश्यन्ति, सर्वे बाधा ग्रहाश्च ये।।

।।मूल-पाठ।।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवंशाख्य-कवच-माला-मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः। श्रीसूर्यो देवता। वंश-वृद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास- ब्रह्मा-ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप्-छन्दसे नमः मुखे।
श्रीसूर्य-देवतायै नमः हृदि।
वंश-वृद्धयर्थे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

कवच-

पूर्वे रक्षतु वाराही, चाग्नेयामम्बिका स्वयम्।
दक्षिणे चण्डिका रक्षेत्, नैऋत्यां शव-वाहिनी।

पश्चिमे कौमुदा रक्षेत्, वायाव्यां च महेश्वरी।
उत्तरे वैष्णवी रक्षेत्, ईशाने सिंह-वाहिनी।।

ऊर्घ्वं तु शारदा रक्षेत्, अधो रक्षतु पार्वती।
शाकम्भरी शिरो रक्षेत्, मुखं रक्षतु भैरवी।।

कण्ठं रक्षतु चामुण्डा, हृदयं रक्षेच्छिवा।
ईशानी च भुजौ रक्षेत्, कुक्षौ नाभिं च कालिका।।

अपर्णा उदरं रक्षेत्, कटि-वस्ती शिव-प्रिया।
उरु रक्षतु वाराही, जाया जानु-द्वयं तथा।।

गुल्फौ पादौ सदा रक्षेत्, ब्रह्माणी परमेश्वरी।
सर्वांगानि सदा रक्षेत्, दुर्गा दुर्गार्ति-नाशिनी।।

मन्त्र- “नमो देव्यै महा-देव्यै सततं नमः।
पुत्रं सौख्यं देहि देहि, गर्भ रक्षा कुरुष्व नः।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं दुर्गे दुर्गार्ति-नाशिनी! सन्तान-सौख्यं देहि देहि, वन्ध्यत्वं मृत वत्सत्वं हा हा गर्भ रक्षां कुरु कुरु, सकलां बाधां कुलजां वासजां कृतामकृतां च नाशय नाशय, सर्व-गात्राणि रक्ष-रक्ष, गर्भ पोषय पोष्य, सर्वं रोगं शोषय, आशु दीर्घायु-पुत्रं देहि देहि स्वाहा।।”

प्रयोग के समय सन्तान की इच्छा रखनेवाली स्त्री का ‘ऋतु-काल′ होना चाहिए। ‘ऋतु-स्नान’ के दिन ही रात्रि-काल में यह प्रयोग किया जाता है।
सर्व-प्रथम ‘पीपल′ के सात पत्तों पर अनार की कलम द्वारा ‘रक्त-चन्दन’ से मन्त्र को लिखें।
फिर दो छटाँक सरसों के तेल में उक्त सात पीपल के पत्तों को धो डाले।
ऐसा करने से तेल में मन्त्र का प्रभाव चला जाएगा।
अब पुनः ‘पीपल′ के सात पत्तों पर अनार की कलम से मन्त्र को लिखें और उन पत्तों को स्नान करने के जल में डाल दें।
इसके बाद रात्रि-काल में वह स्त्री किसी निर्जन स्थान में जाकर उस सरसों के तेल को अपने पूरे शरीर में लगा ले।
शरीर का कोई भी बाघ तेल लगने से नहीं छूटना चाहिए।
तेल लगाने के बाद उसी स्थान में स्नान करने वाले जल से, जिसमें पीपल के पत्ते डाले गए हैं, स्नान कर लें।
जो भी पुराने वस्त्र हों, उन्हें वहीं उसी स्थान में छोड़ दें। वहाँ से कुछ दूर हट कर नये वस्त्र पहन लें।
तब घर वापस आ जाए।
घर में पुरोहित, ब्राह्मण या कोई अभिभावक उक्त मन्त्र से १०८ बार कुश के द्वारा उस स्त्री को झाड़े।
झाड़ने के बाद उस स्त्री के शरीर की नाप के बराबर लाल धागा ले और उक्त मन्त्र को पढ़कर उस धागे में गाँठ बाँधकर उसकी कमर में बाँध दे।
उस रात्रि पुरुष के साथ प्रसंग

संतान प्राप्ति के उपाय——

जिस इस्त्री को गर्भ धारण न होता हो तो उस इस्त्री को ऋतु-काल के बाद नहा-धोकर मृगछाला पर पवित्र मन से बैठ कर मन मे संतान प्राप्ति का संकल्प करना चाहिए l
फिर न्रिम मन्त्र को 108 बार पड़कर रात मे पति से संभोग करने से इस्त्री को गर्भ धारण होता है l

ॐ ह्रीं उलजाल्ये ठ ठ ॐ ह्रीं l

ॐ नम : सिधि रुपाए अमुकी सपुष्य कुरु कुरु सवाहा l
इस मन्त्र को प्रयोग करने से पूर्व दस हजार बार जप कर सिद्ध कर लेना चाहिए l
तत्पश्चात प्रयोग के समय शंखाहुली स्वरस सवा तोले की मात्रा मे लेकर उपरोक्त मन्त्र से 108 बार अभिमंत्रित कर बंध्या इस्त्री को पिलाना चाहिए l
इस प्रकार अभिमंत्रित किये हुए शंखपुष्पी के ताजे स्वरस को नियम से प्रतिदिन एक सप्ताह तक पिलाना चाहिए और आठवे दिन इस्त्री सहवास करे तो गर्भ धारण करने की पूरी-पूरी संभावना रहती है l
और संतान स्वस्थ रहती है l
जब स्वरस को अभिमंत्रित कर जिस इस्त्री को पिलाना हो तो मन्त्र मे आये “अमुक ” शब्द के स्थान पर उस इस्त्री का नाम लेना चाहिए तथा इस स्वरस के सेवन क्रम मे इस्त्री को सदा ही सात्विक व सादा भोजन करना चाहिए तथा वस्त्र तन- मन से पवित्र रहकर सन्तान प्राप्ति हेतु इश्देव के ध्यान मे लीन रहना चाहिए l

यदि कोई दाम्पती प्रात: स्नानादि से निवत्तृ होकर

भगवान श्री राम और माता कौशल्या की शोड्शोपचार पूजा करके नियमित रूप से एक माला इस चौपाई का

पाठ करे तो पुत्र प्राप्ति अवश्य होगी:—-

प्रेम मगन कौशल्या, लिस दिन जात न जात।
सुत सनेह बस माता, बाल चरित कर गाय।

सन्तान प्राप्ति हेतु यदि दाम्पति नौं वर्ष से कम आयु वाली कन्याओं के पैर छूकर 90 दिन तक यदि आशीर्वाद प्राप्त करे तो सन्तान अवश्य प्राप्त होगी।

1. सन्तान प्राप्ति के लिए भी पहले संकट बाँधने से लेकर संकट परिक्षण तक का सारा काम करना होता है।
2. सन्तान प्राप्ति की इच्छुक महिला (संकट-यात्रा के) आखिरी/समाप्ति वाली रात को एक थाली में मेंहदीं का थोडा गाढा घोल बना लें (इसे हाथों में लगा कर उल्टे थापे लगाने होते हैं)
3. रात को श्री बालाजी मन्दिर के कपाट बन्द होने के एक घण्टा बाद करीब नौ-दस बजे चुपचाप श्री बालाजी मन्दिर की मुख्य दिवारों पर मेंहदीं वाले घोल से अपने दोनों हाथों के उल्टे थापे लगा दे (काम पूरा करने के लिए कोई सहायक जरुर साथ ले लें परन्तु उससे बातचीत ना करें, उल्टे थापे लगाते समय मन ही मन में श्री बालाजी महाराज से नाराजगी रखते हुए कहें कि- जब तक आप मुझे पुत्र नहीं देगें तब तक मैं आप के यहाँ नहीं आऊगीं)

उदाहरण के तौर पर राजा दशरथ भी संतानहीन थे परंतु पुत्रेष्टि यज्ञ के फलस्वरूप उन्हें चार-चार पुत्र प्राप्त हुए थे। Û एकांती देवी का अनुष्ठान: इसका अनुष्ठान संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है।
शास्त्रानुसार यह सिद्ध मंत्र है, इसका कोई ध्यान या न्यास नहीं है।
वंध्या स्त्री कोई भी संतानप्रद औषधि लेने से पहले इस मंत्र का स्मरण करे तो उत्तम रहता है।
मात्र 10,000 जप करने से जप संपन्न हो जाता है। मंत्र: ऊँ ह्रीं फैं एकांती देवतायै नमः।
देवी के मनोरम स्वरूप का ध्यान कर सामने कोई भी प्रतीक रखकर पूजन कर लें जैसे खड्ग।
प्रतीक में यह मंत्र किसी दीवार को धो पोंछकर उस पर सिंदूर से भी लिखा जा सकता है या भोजपत्र पर भी लिखा जा सकता है।
इसी मंत्र की पूजा, धूप, दीप, प्रसाद, पुष्प, गंध अर्पित कर मन से पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करके जप कर लेना चाहिए।
आसन लाल कंबल या कुशा का रहे।
गृहस्थ व्यक्ति को कठोर जैसे कुशा का आसन नहीं बिछाना चाहिए।
ऐसे आसन के ऊपर कोई नरम आसन बिछाकर बैठना चाहिए।
कंबल हो या साटन, काले या नीले रंग का नहीं हो, लाल, पीला या सफेद रंग का हो सकता है।
अन्य प्रयोग मंत्र: ऊँ ह्रां ह्रीं हू्रं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा।
इस षोडशाक्षर मंत्र का ध्यान, न्यास आदि नहीं है। वसंत ऋतु से प्रारंभ करके दस हजार जप आम के वृक्ष पर चढ़कर करें।
मंत्र जप से पहले स्नान, नित्यकर्मादि कर लेने चाहिए। यह प्रयोग करने के दो माह या दो ऋतुकाल होने पर भी गर्भस्थिति न हो तो फिर से करना चाहिए।
मृतवत्सा यंत्र: यह यंत्र रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य, सर्वार्थसिद्धि अमृतसिद्धि योगों में अनार की कलम से गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर गुग्गुल की धूनी देकर स्त्री गर्भवती स्थिति में या वैसे ही गले में धारण कर लें। यह यंत्र सोने, चांदी या तांबे के ताबीज में रखकर पहना जा सकता है। लिखने के बाद इसे कुछ समय तक एकाग्र मन से श्रद्धा भक्ति पूर्वक देखते रहना चाहिए। यंत्र इस प्रकार है। वंध्या निवारक यंत्र को धारण करने से स्त्री गर्भवती होती है इस यंत्र को अनार की कलम और अष्टगंध की स्याही से भोज पत्र पर किसी शुभ मुहूर्त में पवित्रतापूर्वक अत्यंत धैर्य से 108 बार लिखें।
इनकी पंचोपचार पूजा करें।
और पुत्र की कामना कर अपने इष्ट देव के इष्ट मंत्र की एक माला जप करें।
यह क्रम लगातार 30 दिन अर्थात एक माह तक चलता रहे। पहला दिन पहला यंत्र लिख कर एक विशेष प्रकार से रखें जिससे उसकी पहचान हो जाए।
इस तरह 3241 यंत्र तैयार हो जाएंगे।
अंतिम दिन सभी यंत्रों की पूजा करें।
इष्ट मंत्र का 3240 बार जप करें। 3240 मंत्र हवन करें। 324 मंत्र तर्पण करें। 3 मंत्र मार्जन करें और ब्राह्मण को भोजन कराएं तथा दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।
उसके बाद पहले दिन यंत्र को तांबे के यंत्र या लाल वस्त्र में लपेट कर गले में धारण करें।
यंत्र इस प्रकार लगा रहे कि गर्भाशय से स्पर्श करता हो। शेष 3240 यंत्र आटे में गूंध कर गोलियां बना लें और उन्हें जल में विसर्जन कर दें।
यदि जलाशय नहीं हो तो पीपल के जड़ में रख दें।
अगर किसी स्त्री का गर्भपात हो जाता हो तो यंत्र 2 को धारण करें।
किसी रवि-मूल योग में इस यंत्र को अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से भोजपत्र पर लिखें।
सम्पर्क
पंडित
भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
09893946810

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