Friday, 30 June 2023

वर्षा और घाघ भडरी

चैते वर्षा आई और सावन सूखा जाई।
एक बूंद जो चैत में परे सहसबूंद सावन की हरै।

घाघ! कहते हैं यदि चैत के महीने में वर्षा होगी तो सावन के महीने में कम वर्षा होगी। यदि एक बूंद भी वर्षा की पड़ती है, तो वह सावन की हजार बूंदों को समाप्त कर देती है। पाठकजनों! आपको याद होगा इस बार चैत्र (मार्च-अप्रैल) के माह में प0 उत्तर प्रदेश में वर्षा हुई थी, किसानों को उस माह अपनी गेहूं की फसल में पानी नहीं देना पड़ा, जबकि उस माह में अधिकतर वर्षा नहीं होती, परिणाम हमारे सामने है, पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में सावन का महीना लगभग सूखा गया है।

माघ के ऊमष जेठ के जाड़, पहिला वर्षा भरिगे ताल।
कहैंघाघ हम होई बियोगी, कुआ खोदि के धोईहैं धोबी।।

घाघ! कहते हैं-यदि माघ के महिने में जाड़े के बजाय गर्मी पड़े और जेठ में गर्मी के जगह जाड़ा पड़े व पहली वर्षा से तालाब भर जाये तो समझ लेना चाहिए कि इस वर्ष इतना सूखा पड़ेगा कि धोबियों को भी कपड़े धोने के लिए जल कुएं से खींचना पड़ेगा। पाठकजनों! इस बार जेठ (मई-जून) के माह में गर्मी औसत से कम थी, परिणाम हमारे सामने है पूरा पश्चिम उत्तर प्रदेश काफी हद तक सूखे की चपेट में है।

मंगल रथ आगे चलै, पीछे चले जो सूर।
मन्द वृष्टि तब जानिये, पडती सगले धूर।।

इस कहावत में घाघ! ज्योतिष के अनुसार ग्रह-गोचर देखकर, वर्षा की भविष्यवाणी कैसे करे बताते हैं, यदि ग्रह-गौचर में मंगल आगे और सूर्य पीछे हो निश्चित ही सूखा पड़ता है। पाठकजनों!! इस वर्ष में जनवरी से अप्रैल तक मंगल गौचर में सूर्य से आगे रहे हैं, परन्तु 15 अप्रैल से सूर्य, मंगल से आगे चल रहे हैं।

आगे रवि पीछे चले, मंगल जो आषाड़।
तौ बरसे अनमोल हो, पृथ्वी आनन्द बाढ़।

जिस वर्ष गौचर में सूर्य के पीछे मंगल रहते हैं उस साल वर्षा खूब होती है और पृथ्वी पर आनन्द होता है।

माघ में जो बादर लाल घिरै, सांची मानो पाथर परै।
भड्डरी! कहते हैं कि यदि माघ के महीने मे

सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।

अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

अर्थात् यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।

रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।

अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।

उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।

अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।

पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।

अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है।

आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।

अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।

दरअसल कृषक कवि घाघ ने अपने अनुभवों से जो निष्‍कर्ष निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक मौसम विज्ञान की निष्‍पत्तियों से कम उपयोगी नहीं हैं।
संकलन कर्ता
Gurudev bhubneshwar
Gunaa 

महा लिंग स्तुति



अनादिमलसंसार रोगवैद्याय शंभवे।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 
आदिमध्यान्तहीनाय स्वभावानालादीपतये।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 2॥
प्रलयार्नवसंस्थाय प्रलयोत्पत्तिहेतवे।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 3॥
ज्वालामालावृताङगाय ज्वलनस्तंभरूपिणे।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 4॥
महादेवाय महते ज्योतिषेऽनन्ततेजसे।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 5॥
प्रधानपुरुषेषाय व्योमरूपाय वेधसे।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 6॥
निर्विकाराय नित्याय सत्ययामलतेजसे।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 7॥
वेदांतसाररूपाय कालरूपाय धीमते।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्राह्मणे लिंगमूर्तये॥ 8॥
इति श्रीकूर्मपुराणान्तर्गतं श्रीमहलिङ्गस्तुतिः समाप्त।