ज्योतिष समाधान

Thursday, 22 April 2021

भूमी पूजन सामग्री ऐबं शिलान्यास सामग्री पर्णकुटी गुना


1=रोली 

2=चावल=500 ग्राम
3=गोल सुपारी =50 ग्राम
4=आँटि(कलावा) 50 ग्राम अथवा 2 गोले
5=नारियल  =5 नग 
6=जनेऊ =5नग
7=लौंग=10ग्राम
8=इलायची=10 ग्राम
9=सिन्दूर= 50 ग्राम
10=इत्र= 1 शीशी चंदन
11=सरसो = 50 ग्राम
12=गाय का घी 100 ग्राम
13=रुई = 20 ग्राम
14=माचिस=1 नग 
15=शहद = 50 ग्राम
16=अगरवात्ती
17=धुप बत्ती
18=शकर =100 ग्राम
19=गाय का गोवर =2 किलो
20=गाय का मूत्र=50 ग्राम
21=गाय का दही =50
22=गाय का  दूध =100 ग्राम
23= मिठाई =अनुमानित
24=आम के पत्ते
25=पान के पत्ते =11 
26=दूर्वा 
27=ऋतु फ़ल=अनुमानित
28=दोना=1 गड्डी 
29=
30=
31=लाल कपडा  =आधा मीटर 
32=सफेद कपडा =आधा मीटर 

घर से ले जाने वाला समान 
चटाई बैठने को 
गेहू =500 ग्राम
दिपक
पूजा की थाली
लोटा पूजा के लिये 
गंगा जल
आटा  हल्दी चोक पुरने  के लिये 
गठ्जोडा   
आसन 
पेपर
पाटा लकड़ी का 

कलश के अंदर चांदी के सर्प का जोड़ा, 
लोहे की चार नाग फ़नि कील 
कछुआ 
पंच रत्न
हल्दी की पांच गांठे, 
पान के 11 पत्तें, 
तुलसी की 35 पत्तियों, 
मिट्टी के 11 दीपक, 
तगाडसि /2
फड़ुआ  /2
गेंती /1  
पांच ईंटे  शिलान्यास के लिये 
पांच  कलश छोटे  मिट्टी के  
अथवा ताबे के छोटे कलश 
 
Gurudev 
Bhubneshwar 
Parnkuti  gunaa 
9893946810

Sunday, 18 April 2021

किस उम्र मे होगा आपका भाग्य उदय

 यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है. 

ग्रह फल के अनुसार बृहस्पति सबसे जल्दी किस्मत का कनेक्शन बनाते हैं. 

देवगुरु बृहस्पति 16 से 22 वर्ष की उम्र तक कुंडली में अच्छे होने पर फल देने लग जाते हैं. 

उच्च का योगकारक गुरु व्यक्ति का नवयुवा अवस्था में ही भाग्योदय करा देता है. 

ऐसे लोग समाज में बड़ा नाम और दाम कमाते हैं. दांपत्य जीवन की शुरुआत भी ऐसे लोगों की जल्द हो जाती है यानी शादी जल्दी हो जाती है.


न्याय के देवता शनिदेव 

पूर्ण अनुभव प्राप्त होने पर भाग्योदय का मार्ग प्रशस्त करते हैं. 

शनिदेव 36 से 42 वर्ष की उम्र में भाग्य उदित करते हैं. 

शनिदेव की प्रबलता और शुभता रखने वाले लोग 36 वर्ष की उम्र के बाद सफलता की सीढ़ियां तेजी से चढ़ते हैं.

 महत्वपूर्ण बात यह है कि शनिदेव की कृपा से बनी भाग्यकारक स्थिति ताउम्र बनी रहती है. 

कई बार तो व्यक्ति के कार्याें की छाप उसके बाद भी बनी रहती है.


शनिदेव के बाद सबसे देरी भाग्योदय देने वाले ग्रह राहु और केतु हैं. 

राहु 42 के बाद भाग्य की राह बनाते हैं. 

केतु राहु से भी देरी से भाग्योदय करते हैं.

 केतु 48 से 54 वर्ष की उम्र में भाग्यफल देते हैं. 

गुरु के बाद सबसे जल्दी फल सूर्यदेव देते हैं. 

सूर्यदेव 22 से 24 वर्ष के बीच भाग्योदय करते हैं.


चंद्रमा 

24 से 25 वर्ष के बीच भाग्योदय कराते हैं. 

शुक्रदेव

 25 से 28 के बीच भाग्य को प्रशस्त करते हैं.

 28 से 32 वर्ष के मध्य मंगल भाग्यकारक होते हैं. 

बुधदेव 32 से 36 वर्ष की उम्र में भाग्योदय कराते हैं.

जिस जातक की कुंडली में जो ग्रह बलवान और योगकारक होता है उससे संबंधित वर्षाें में व्यक्ति अच्छी उन्नति करता है.


Sunday, 11 April 2021

नक्षत्रो के स्वामी ग्रह

 राशि की तरह 27 नक्षत्रों के भी स्वामी ग्रह होते हैं जो इस प्रकार है 
अश्वनी, मघा और मूल नक्षत्रों के स्वामी केतु है। भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा का शुक्र, 
कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा का सूर्य, रोहिणी, हस्त और श्रवण का चंद्र,
 मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा का मंगल, 
आद्र्रा, स्वाती और शतभिषा का राहु, 
पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद का गुरु, 
पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद का शनि 
और आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का बुध
 स्वामी ग्रह होता है। 
इन सभी 27 नक्षत्रों को आगे फिर चार चरणों में विभक्त किया गया है

Saturday, 10 April 2021

किस भाव से क्या देखे कुंडली परिक्षण

कुंडली के सभी बारह भावों से जीवन के विभिन्न विषयों की जानकारी ली जा सकती है। इसका विस्तार में वर्णन निम्नलिखित हैं-

प्रथम भाव (लग्न भाव)


प्रथम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-

देह, तनु, शरीर रचना, व्यक्तित्व, चेहरा, स्वास्थ्य, चरित्र, स्वभाव, बुद्धि, आयु, सौभाग्य, सम्मान, प्रतिष्ठा और समृद्धि।

द्वितीय भाव (धन / कुतुम्ब भाव)


संपत्ति, परिवार, वाणी, दायीं आंख, नाखून, जिह्वा, नासिका, दांत, उद्देश्य, भोजन, कल्पना, अवलोकन, आभूषण, कीमती पत्थर, अप्राकृतिक मैथुन, ठगना और जीवनसाथियों के बीच हिंसा।

तृतीय भाव (पराक्रम / सहोदर भाव)


छोटे भाई और बहन, सहोदर भाई बहन, संबंधी, रिश्ते, पड़ोसी, साहस, निश्चितता, हमुरी, सीना, दाएं कान, हाथ, लघु यात्राएं, नाड़ी तंत्र, संचरण, संप्रेषण, लेखन, पुस्तक लेखन, समाचार पत्रों की सूचना, संवाद इत्यादि लिखें, शिक्षा, बुद्धि इत्यादि।

चतुर्थ भाव (सुख / मातृ भाव)


माता, संबंधी, वाहन, घरेलू वातावरण, सौन्दर्य, भूमि, आवास, शिक्षा, जमीन-जायदाद, वंशावली प्रकृति, जीवन का उत्तरार्ध भाग, छिपा हुआ, गुप्त प्रेम संबंध, सीना, वैवाहिक जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार के हस्तक्षेप, गहने, कपड़े।

पंचम भाव (संतान / शिक्षा भाव)


संतान, बुद्धि, प्रसिद्धि, श्रेणी, उदर, प्रेम संबंध, आनंद, मनोरंजन, सट्टा, पूर्व जन्म, आत्मा, जीवन स्तर, पद, प्रतिष्ठा, कलात्मकता, हृदय, पीठ, खेल में निपुणता, प्रतियोगिता में सफलता।

षष्ठ भाव (रिपु भाव)


रोग, ऋण, विवाद, अभाव, अंक, मामा, मामी, शत्रु, सेवा, भोजन, कपड़े, चोरी, बदनामी, पालतू पशु, सरकारी कर्मचारी, मनोहर कर्मचारी, कमर

सप्तम भाव (कलत्र भाव)


पति / पत्नी का व्यक्तित्व, जीवनसाथी के साथ संबंध, इच्छाएं, काम शक्ति, साझेदारी, प्रत्यक्ष श्रतु, मुआवजा, यात्रा, कानून, जीवन के लिएone, विदेशों में प्रभाव और प्रतिष्ठा, जनता के साथ संबंध, यौन रोग, मूत्र रोग।

अष्टम भाव (आयु / मृत्यु भाव)


आयु, मृत्यु का प्रकार अर्थात मृत्यु कैसे होगी, जननांग, बाधाएं, दुर्घटना, आकस्मिक की संपत्ति, विरासत, बपति, पैतृक संपत्ति, वसीयत, पेंशन, परिधान, चोरी, डकैती, चिंता, रूकावट, युद्ध, शत्रु, विरासत में मिला धन, मानसिक वेदना, वैवाहिक जीवन।

नवम भाव (भाग्य / धर्म भाव)


सौभाग्य, धर्म, चरित्र, दादा-दादी, लंबी यात्राएं, पोता, बुजुर्गों और देवताओं के प्रति श्रद्धा व भक्ति, आध्यात्मिक उन्नति, स्वप्न, उच्च शिक्षा, पत्नी का छोटा भाई, भाई की पत्नी, तीर्थयात्रा, दर्शन, संपर्क से संपर्क करें।

दशम भाव (कर्म भाव)


व्यवसाय, कीर्ति, शक्ति, अधिकार, नेतृत्व, अधिकार, सम्मान, सफलता, रूतबा, स्नेह, चरित्र, कर्म, उद्देश्य, पिता, मालिक, नियोजक, अधिकारी, अधिकारियों से संबंध, व्यापार में सफलता, नौकरी में तरक्की, सरकार से सम्मान।

एकादश भाव (लाभ भाव)


लाभ, समृद्धि, कामनाओं की पूर्ति, मित्र, बड़ा भाई, तखने, बायां कान, परामर्शदाता, प्रिय, रोग मुक्ति, प्रत्याशा, पुत्रवधू, इच्छाएं, कार्यों में सफलता।

द्वादश भाव (व्यय भाव)


हानि, दण्ड, कारावास, व्यय, दान, विवाह, जलाश्रयों से संबंधित कार्य, वैदिक यज्ञ, अदा किया गया, विवाहेत्तर काम क्रीड़ा, काम क्रीड़ा और यौन संबंधों सेtyन्न रोग, काम क्रीड़ा, कमजोरी, शयन सुविधा, ऐय्याशी, भोग विलास , पत्नी की हानि, शादी में नुकसान, नौकरी छूटना, अपने लोगों से सिपाही, संबंध विद्या, लंबी यात्रा, विदेश में सुरक्षा।

Gurudev  bhubneshwar

Parnkuti guna

9893946810

Thursday, 8 April 2021

गर्भधारण विकार में शिवलिंगी का सेवन लाभदायक

गर्भधारण विकार में शिवलिंगी का सेवन लाभदायक (Shivlingi Seed Powder Helps in Pregnancy Disorder in Hindi)

प्रजनन का सीधा संबंध अंडाणुओं और शुक्राणुओं की संख्या और स्वास्थ्य से है। शिवलिंगी के बीज (Shivlingi Beej) ओवेरियन रिजर्व (Ovarian Reserve) जैसी समस्याओं को दूर करते हैं और मासिक धर्म को नियमित करते हैं। इसके बीज चूर्ण का प्रयोग (Shivlingi Beej Uses in Hindi) गर्भधारण हेतु किया जाता है।

कई महात्मा लोग स्त्री या पुरुष को संतान की प्राप्ति के लिए मासिक धर्म के 4 दिन बाद से 1 माह तक सुबह-शाम शिवलिंगी के बीज एक ग्राम की मात्रा में खाली पेट दूध के साथ सेवन कराते हैं।

जिनको पुत्र प्राप्ति (Shivlingi Beej For Male Child In Hindi) की कामना है, उन्हें बछिया वाली गाय के दूध के साथ सेवन करना अच्छा होता है। जिन्हें स्त्री संतान यानी लड़की प्राप्ति की कामना है उन्हें बछड़ी वाली गाय के दूध के साथ इसका सेवन करना होता है।

जिन महिलाओं को गर्भ न ठहरता हो अर्थात बार-बार गर्भ गिर जाता हो, वे मासिक धर्म के बाद शिवलिंगी के एक बीज से शुरुआत करके प्रत्येक दिन एक बीज बढ़ाते हुए 21 दिन तक सेवन करें। इससे गर्भ ठहर जाता है एवं गर्भ नहीं गिरता।

शिवलिंगी बीज आधा ग्राम तथा पुत्रजीवक बीज एक ग्राम (Shivlingi Beej And Putrajeevak Benefits In Hindi) दोनों को मिला लें। इसे पीसकर बराबर भाग में मिश्री मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से बांझपन की समस्या में लाभ होता है तथा स्त्री गर्भ-धारण के योग्य बन जाती है। (अनेक बार चिकित्सकीय परीक्षण सही होने पर भी गर्भ धारण नहीं हो पाता; उनके लिए यह एक सैंकड़ों बार परीक्षण किया गया प्रयोग है)।

Gurudev 

Bhubneshwar

Parnkuti guna 

9893946810

Monday, 5 April 2021

प्रमादी नाम सम्बत्सर क्षय क्योकी प्रमादी नाम के वाद आनन्द सम्बत्सर होना चाहिये ३


क्रमांकनामवर्तमान चक्रपूर्व चक्र 1
1प्रभव1974-1975ई.1914-1915
2विभव1975-1976ई.1915-1916 ई.
3शुक्ल1976-1977 ई.1916-1917 ई.
4प्रमोद1977-1978 ई.1917-1918 ई.
5प्रजापति1978-1979 ई.1918-1919 ई.
6अंगिरा1979-1980 ई.1919-1920 ई.
7श्रीमुख1980-1981 ई.1920-1921 ई.
8भाव1981-1982 ई.1921-1922 ई.
9युवा1982-1983 ई.1922-1923 ई.
10धाता1983-1984 ई.1923-1924 ई.
11ईश्वर1984-1985ई.1924-1925 ई.
12बहुधान्य1985-1986 ई.1925-1926 ई.
13प्रमाथी1986-1987 ई.1926-1927 ई.
14विक्रम1987-1988ई.1927-1928 ई.
15वृषप्रजा1988-1989 ई.1928-1929 ई.
16चित्रभानु1989-1990 ई.1929-1930 ई.
17सुभानु1990-1991 ई.1930-1931 ई.
18तारण1991-1992 ई.1931-1932 ई.
19पार्थिव1992-1993 ई.1932-1933 ई.
20अव्यय1993-1994 ई.1933-1934 ई.
21सर्वजीत1994-1995 ई.1934-1935 ई.
22सर्वधारी1995-1996 ई.1935-1936 ई.
23विरोधी1996-1997 ई.1936-1937 ई.
24विकृति1997-1998 ई.1937-1938 ई.
25खर1998-1999 ई.1938-1939 ई.
26नंदन1999-2000 ई.1939-1940 ई.
27विजय2000-2001 ई.1940-1941 ई.
28जय2001-2002 ई.1941-1942 ई.
29मन्मथ2002-2003 ई.1942-1943 ई.
30दुर्मुख2003-2004 ई.1943-1944 ई.
31हेमलंबी2004-2005 ई.1944-1945 ई.
32विलंबी2005-2006 ई.1945-1946 ई.
33विकारी2006-2007 ई.1946-1947 ई.
34शार्वरी2007-2008 ई.1947-1948 ई.
35प्लव2008-2009 ई.1948-1949 ई.
36शुभकृत2009-2010 ई.1949-1950 ई.
37शोभकृत2010-2011 ई.1950-1951 ई.
38क्रोधी2011-2012 ई.1951-1952 ई.
39विश्वावसु2012-2013 ई.1952-1953 ई.
40पराभव2013-2014 ई.1953-1954 ई.
41प्ल्वंग2014-2015ई.1954-1955 ई.
42कीलक2015-2016 ई.1955-1956 ई.
43सौम्य2016-2017 ई.1956-1957 ई.
44साधारण2017-2018 ई.1957-1958 ई.
45विरोधकृत2018-2019 ई.1958-1959 ई.
46परिधावी2019-2020 ई.1959-1960 ई.
47प्रमादी2020-2021 ई.1960-1961 ई.
48आनंद2021-2022 ई.1961-1962 ई.
49राक्षस2022-2023 ई.1962-1963 ई.
50आनल2023-2024 ई.1963-1964 ई.
51पिंगल2024-2025 ई.1964-1965 ई.
52कालयुक्त2025-2026 ई.1965-1966 ई.
53सिद्धार्थी2026-2027 ई.1966-1967 ई.
54रौद्र2027-2028 ई.1967-1968 ई.
55दुर्मति2028-2029 ई.1968-1969 ई.
56दुन्दुभी2029-2030 ई.1969-1970 ई.
57रूधिरोद्गारी2030-2031 ई.1970-1971 ई.
58रक्ताक्षी2031-2032 ई.1971-1972 ई.
59क्रोधन2032-2033 ई.1972-1973 ई.
60क्षय2033-2034 ई.1973-1974 ई