Friday, 26 March 2021
कार्य सिध्द होगा या नही 9893946810
प्रश्न कर्ता के मुख से निकाले शब्द
मे 6 से गुणा उसमे 8 जोडना
उसमे नो का भाग
1 मे नही होगा
2 मे होगा
3 मे मरण समान
4 मे आनन्द से होगा
5:6 मे होगा
7:8:9: मे नही होगा
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रोग प्रश्न
तिथी संख्याऔर
तिथी की घड़ी
को दुगनी करके उसमे चार जोडना तीन से भाग देना
1 बचे तो तुरंत ठीक
0 बचे तो तुरंत मरण
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जन्म नक्षत्र से,
जिस नक्षत्र में कार्य का आरंभ होना हो,
वह नक्षत्र ले।
जन्म नक्षत्र से अमुक नक्षत्र को गिन ले।
जो संख्या आए,
उसमें 9 से भाग दें।
शेष के अनुसार फलकथन निम्न होगा।
यदि-
1 शेष आए तो शारीरिक कष्ट।
2 शेष आए तो उन्नति।
3 शेष आए तो नुकसान
4 शेष आए तो विशेष उन्नति।
5 शेष आए तो बाधा।
6 शेष आए तो कार्य सिद्धि।
7 शेष आए तो अत्यंत अशुभ।
8 शेष आए तो मिलन तथा
9 शेष आए तो अत्यंत शुभ होता है।
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प्रेत बाधा केसे दूर करे 9893946810
प्रेत बाधा निवारक मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच शाकिनी डाकिनी यक्षणी पूतना मारी महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम् क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर हुं फट् स्वाहा। इस हनुमान मंत्र का पांच बार जाप करने से कभी भूत निकट नहीं आ सकते।
आप ऊपरी बाधा हटाने के उपाय के अंतर्गत ये उपाय करना न भूलें| काली सरसों, काले बकरे का दायाँ सींग, सर्प की केंचुली, गुग्गुल, नीम के पत्ते, अपामार्ग के पत्ते और बच को लेकर अच्छे से कूट पीस लें| इस चूर्ण को जलते कंडे पर डालकर धूनी करें और पीड़ित व्यक्ति को धूनी दें| ऐसा करने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है|
| आप 5 ग्राम कपूर, 5 ग्राम काली मिर्च और 5 ग्राम हींग ले लें| इसको पीसकर इसका पाउडर बनायें और फिर इसकी छोटी छोटी गोलियां बना लें| इन गोलियों को 2 बराबर भागों में बाँट दें और फिर एक हिस्से को सुबह और दूसरे को शाम को घर में जलाएं|
शनिवार के दिन इस प्रयोग को करें| इस दिन काले धतूरे की जड़ लेकर आयें और पीड़ित की भुजा पर बांध दें| ऐसा करने से भूत, प्रेत और पिशाच उसका पीछा करना छोड़ देंगे| यदि पीड़ित स्त्री है तो जड़ को उसकी बायीं भुजा में बांधना चाहिए, यदि वह पुरुष है तो उसे उसकी दाहिनी भुजा में बांधना चाहिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
तू है वीर बड़ा हनुमान |
लाल लंगोटी मुख में पान |
ऐर भगावै |
बैर भगावै |
अमुक में शक्ति जगावै |
रहे इसकी काया दुर्बल |
तो माता अंजनी की आन |
दुहाई गौरा पार्वती की |
दुहाई राम की |
दुहाई सीता की |
ले इसके पिण्ड की खबर |
ना रहे इसमें कोई कसर |
यदि कोई अकारण ही दुर्बल होता जा रहा हो और कारण समझ में नहीं आये तो इस मंत्र का 7 बार जाप करते हुए प्रत्येक मंत्र के बाद रोगी पर फूँक लगाए और यही रोगी स्वयं करता है तो रोगी खुद को फूक लगाए इसके साथ ही रोगी को हनुमान जी के मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा से उनके चरणों का सिन्दूर लाकर तिलक भी करें | रोगी किसी भी रोग से पीड़ित हो उसे स्वास्थ्य लाभ अवश्य मिलेगा ||
चोरि की दिशा का ज्ञान केसे करे
1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते हैं।
होता है
1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते हैं।
2. वृषभ लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होती है और चोर क्षत्रिय वर्ण का होता है। उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों वाला होता है।
3. मिथुन लग्न में चोरी गई वस्तु आग्नेय कोण में होती है। चोरी करने वाला व्यक्ति वैश्य वर्ण का होता है और उसका नाम क ककार से प्रारंभ होता है। नाम में तीन अक्षर होते हैं।
4. कर्क लग्न में वस्तु चोरी होने पर दक्षिण दिशा में मिलती है और चोरी करने वाला शूद्र होता है। उसका नाम त अक्षर से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं।
वस्तु नैऋत्य कोण में होती है
5. सिंह लग्न में चोरी हो तो वस्तु नैऋत्य कोण में होती है। चोरी करने वाला नौकर, सेवक होता है। चोर का नाम न से प्रारंभ होता है और नाम तीन या चार अक्षरों का होता है।
6. प्रश्नकाल या चोरी के समय कन्या लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम म से प्रारंभ होता है। नाम में कई वर्ण हो सकते हैं।
7. चोरी के समय तुला लग्न हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में जानना चाहिए। चोरी करने वाला पुत्र, मित्र, भाई या अन्य कोई संबंधी होता है। इसका नाम म से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं। तुला लग्न में गई वस्तु बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है।
वस्तु नैऋत्य कोण में होती है
8. वृश्चिक लग्न में चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोर घर का नौकर ही होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम चार अक्षरों वाला होता है। चोरी करने वाला उत्तम वर्ण का होता है।
9. प्रश्नकाल या चोरी के समय धनु लग्न हो तो चोरी गई वस्तु वायव्य कोण में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में चार वर्ण पाए जाते हैं।
10. चोरी के समय मकर लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर दिशा में समझनी चाहिए। चोरी करने वाला वैश्य जाति का होता है। नाम चार अक्षरों का होता है और वह स से प्रारंभ होता है।
11. प्रश्नकाल या चोरी के समय कुंभ लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होती है। इस प्रश्न लग्न के अनुसार चोरी करने वाला व्यक्ति कोई मनुष्य नहीं होता बल्कि चूहों या अन्य जानवरों के द्वारा इधर-उधर कर दी जाती है।
12. मीन लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु ईशान कोण में होती है। चोरी करने वाला निम्न जाति का व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति चोरी करके वस्तु को जमीन में छुपा देता है। ऐसे चोर का नाम व अक्षर से प्रारंभ होता है और उसके नाम में तीन अक्षर रहते हैं। चोर कोई परिचित महिला या नौकरानी भी हो सकती है।
देवी ऋण
लालकिताब में
केतु की संसार में श्रेणियां
कहावत है जो पूंछ रखता है उसकी ही पूंछ होती है,सांप के शरीर में पूंछ का ही आकार होता है,हाथी की पूंछ तो छोटी होती है और मुंह लम्बी पूंछ का रूप होता है,
देवी ऋण को उतारने का वैदिक तरीका
रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत चण्डिका शाप विमोचन मन्त्र
श्रीदुर्गा-पाठ को करने से पहले अगर इन बीस श्लोकों को पढ लिया जावे तो किसी प्रकार से देवी की पूजा के प्रति की गयी भूल से मिला श्राप खत्म हो जाता है,अक्सर श्रीदुर्गा पूजा में किसी न किसी प्रकार का विघ्न तभी पडता है ,जब जानबूझ कर या किसी कारण वश पूजा में अशुद्धि या किसी कन्या को बेकार में परेशान किया जाता है।
शाप-विमोचन संकल्प
ऊँ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचन मन्त्रस्य वसिष्ठनारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषय: सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्रीं शक्ति: त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तो मम संकल्पितकार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
शापविमोचन मन्त्र
ऊँ (ह्रीं) रीं रेत:स्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१॥
ऊँ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै,ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥२॥
ऊँ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥३॥
ऊँ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥४॥
ऊँ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥५॥
ऊँ तं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥६॥
ऊँ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥७॥
ऊँ जां जातिरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥८॥
ऊँ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥९॥
ऊँ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१०॥
ऊँ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफ़लदात्र्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥११॥
ऊँ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१२॥
ऊँ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१३॥
ऊँ माँ मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमासहितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१४॥
ऊँ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१५॥
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं नम: शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१६॥
ऊँ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फ़ट स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१७॥
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नम:॥१८॥
इत्येवं हि महामन्त्रान पठित्वा परमेश्वर,चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशय:॥१९॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति य:,आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशय:॥२०॥
Tuesday, 16 March 2021
यज्ञादी कार्य के लिये बृक्ष काटने का मुहूर्त एबं हवन के लिए कौन सी लकड़ी का चयन करें
प्रसंगवश अब काष्ठछेदन की बात करते हैं-
विश्वकर्मप्रकाश,
द्व्यङ्गराशिगते सूर्ये माघे भाद्रपदे तथा।
वृक्षाणां छेदनं कार्यं सञ्चयार्थं न कारयेत्।।
सिंहे नक्ते च दारुणां छेदनं नैव कारयेत्।
ये मोहाच्च प्रकुर्वन्ति तेषां गेहेऽग्नितो भयम्।।
अर्थात्
सौम्यं पुनर्वसुं मैत्रं करं मूलोत्तरात्रये।
स्वाती च श्रवणं चैव वृक्षाणां छेदने शुभम्।।
अर्थात् मृगशिरा,पुनर्वसु,अनुराधा,हस्ता,मूल,
चन्द्रमा के दस नक्षत्रों की चर्चा करके अब अगले
सूर्यभाद्वेदगोतर्कदिग्विश्वनखसम्मिते।
चन्द्रर्क्षे दारुकाष्ठानां छेदनं शुभदायकम्।।
अर्थात्
पर चन्द्रमा के रहने पर वृक्षछेदन उत्तम होता है।
नोटः- यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि उक्त दिन चन्द्रमा का नक्षत्र,
अब एक अति विशिष्ट योग को इंगित करते हैं-
कृष्णपक्षे चतुर्दश्यां रेवतीरोहिणीयुते।
यदा तदा गुरौ लग्ने गृहार्थं तु हरेद्रुमान्।
अर्थात्
इसी प्रसंग में तृणादि से
लग्ने शुक्रे गुरौ केन्द्रेष्वगराशौ गृहोपरि।
अन्य प्रसंग में कहा गया है कि धनिष्ठा,शतभिष,पूर्वभाद्र,उत्तरभाद्र,एवं रेवती इन पांच नक्षत्रों की पंचक संज्ञा है।
(नोट- पंचक में सिर्फ पांच कर्म ही वर्जित हैं- काष्टसंचय,
वृक्षछेदन मुहूर्त-चर्चा के बाद अब छेदन और रक्षण का विचार किया जा रहा है-
रात्रौ कृतबलिंपूजं प्रदक्षिणं छेदयेद्दिवा वृक्षम्।
धन्यमुदक्प्राग्वदनं न ग्राह्योऽन्यथापतितः
अर्थात्
अब अन्यत्र प्रसंग में
यानीह भूतानि वसन्ति तानि बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम्।
अन्यत्र वासं परिकल्पयन्तु क्षमन्तु ते चाऽद्य नमोऽस्तुतेभ्यः।।
वृक्षं प्रभाते सलिलेन सिक्त्वा मध्वाज्यलिप्तेन कुठारकेण
पूर्वोत्तरस्यां दिशि सन्ति कृत्य प्रदक्षिणं शेषमतो विहन्यात्।।
अर्थात् "हे भूतगण(प्राणीगण) जो इस वृक्ष पर निवास करते हों,उनको मैं प्रणाम करता हूँ।वे मेरे द्वारा विधिवत् दी गयी बलि को ग्रहण करके अन्यत्र अपना निवास स्थान बनावें,और मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें।"- रात्रि में इस प्रार्थना और बलि के पश्चात् ,अगले प्रातः काल वृक्ष को जल से सिंचित करके,कुल्हाड़ी में मधु और घी का लेपन करके,पूरब या उत्तर की ओर से काटना प्रारम्भ करे, और दक्षिणावर्त ही कर्तन करे।
वृक्ष को कैसे काटे और काटने के बाद वृक्ष किस दिशा में गिरता है,
छेदयेद्वर्तुलाकारं पतनञ्चोपकल्पयेत्।
प्राग्दिशि पतने कुर्याद्धनधान्यसमर्चितम्।।
आग्नेयामग्निदाहः स्याद्दक्षिणे मृत्युमादिशेत्।
नैऋत्यां कलहं कुर्यात्पश्चिमे पशुवृद्धिदम्।
वायव्ये चौरभीतिः स्यादुत्तरे च धनागमः।
ईशाने च महच्छ्रेष्ठं नानाश्रेष्ठं तथैव च।।
अर्थात्
कटे हुए वृक्ष की लकड़ियों को तत्काल उपयोग में नहीं लाना चाहिए,
काष्ठं नो भक्ष्यते कीटैर्यदि पक्षं धृतं जले ।
Wednesday, 3 March 2021
यज्ञ ऐबं प्रतिष्ठा मे आवश्यक मुहूर्त
पर्णकुटी ज्योतिष केंद्र
Gurudev bhuvaneshvar
Par n kuti guna
9893946810
तिथि फल - एक गुणा
नक्षत्र फल - चार गुणा
वार फल - आठ गुणा
करण फल - सोलह गुणा
योग फल - बत्तीस गुणा
तारा फल - एक सौ आठ गुणा
चंद्र फल - सौ गुणा
लग्न फल - एक हजार गुणा
अथर्व वेद जैसे हमारे आदि ग्रंथों में भी शुभ काल के बारे में अनेक निर्देश प्राप्त होते हैं जो जीवन के समस्त पक्षों की शुभता सुनिश्चित करते हैं।
देव स्थापना के विशेष लग्न्:
स्थाप्यों हिरिर्दिन करो मिथुने महैर्शो।
नारायणश्च युवतौ घटके विधाता।।
देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशंनीयाः।
क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः।।
मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव
तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए।
कन्या लग्न में कृष्ण की,
कुंभ लग्न में ब्रह्मा की,
द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए।
चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है।
लिंग स्थापन तु कत्र्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये।
प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्।
हैमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम्।
लक्ष्मीप्रदं वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणंमतम्।।
यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणंमतम्।।
श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम्।।
दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः।।
माघ, फाल्गुन-वैशाख-ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु।
प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते।।
श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम्।
देव्याः माघाश्विने मासेअव्युत्तमा सर्वकामदा।।
माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़
महीनों में शिव जी की प्रतिष्ठा
सब प्रकार से सिद्धि देने वाली कही गयी है।
श्रावण महीना भी शुभ है।
ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में शिव लिंग की स्थापना से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है।
शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है,
जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति, शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है।
इस प्रकार भगवती जगदम्बा की प्रतिष्ठा माघ एवं अश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है।
चैत्रे वा फाल्गुने मासे ज्येष्ठे वा माधवे तथा।
माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा सिते।
रिक्तान्य तिथिषु स्यात्सवारे भौमान्यके तथा।।
हेमाद्रि के कथनानुसार
: विष्णु प्रतिष्ठा माघे न भवति।
माघे कर्तुः विनाशः स्यात्।
फाल्गुने शुभदा सिता।।
देवी प्रतिष्ठा मुहूर्तः
सर्व देवताओं की प्रतिष्ठा चैत्र,
फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ मास में करना शुभ है।
श्राविणे स्थापयेल्लिंग आश्विनै जगदंबिकाम्। मार्गशीर्ष हरि चैव, सर्वान् पौषेअपि केचन्।। -
मुहूर्तगणपति श्रावण में शंकर की स्थापना करना, आश्विन में जगदंबा की स्थापना करना,
मार्गशीर्ष में विष्णु की स्थापना करना
हस्त्र, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा,
रोहिणी एवं मार्गशीर्ष में सभी देवताओं की,
खास कर देवी की, प्रतिष्ठा शुभ है।
यद्दिनं यस्य देवस्य तद्दिने संस्थितिः। -
वशिष्ठ संहिता जिस देव की जो तिथि हो,
उस दिन उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए।
शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा
तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी दैवी कार्य के लिए सब मनोरथों को देने वाली है।
शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष की दसवीं तक प्रतिष्ठा शुभ रहती है।
इसी प्रकार,
शनि, रवि और मंगल को छोड़ कर,
अन्य सभी वारों में यज्ञ कार्य एवं देव प्रतिष्ठा शुभ कहे गये है।
मंदिर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा के लिए
शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-
शुभ वार- देव प्रतिष्ठा मुहूर्त के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शुभ हैं।
शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की 1, 2, 5,10, 13, 15 वीं तिथि शुभ हैं।
मतांतर से कृष्णपक्ष 1, 2, 5वीं तिथि भी शुभ मानी गई है।
शुभ नक्षत्र- पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, हस्त, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूला, श्रवण, धनिष्ठा व पुनर्वसु नक्षत्र शुभ हैं।
इसके अतिरिक्त उत्तरायण के सूर्य में गुरु, शुक्र और मंगल भी बली होना चाहिए।
लग्न शुद्धि- स्थिर व द्विस्वभाव लग्न हो केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रह एवं 3,6,11वें पाप ग्रह हों।
अष्टम में कोई पाप ग्रह हो।
देवशयन, मलमास, गुरु-शुक्र अस्त व निर्बल चंद्र कदापि नहीं होना चाहिए।
शिवलिंग स्थापना के लिए शिववास भी देखना शुभ होता है।