Monday, 24 September 2018

श्राद्ध कितने प्रकार के होते है मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, । यमस्मृतिमें पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। विश्वामित्र स्मृति, निर्णय सिन्धु तथा भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता हैं

श्राद्ध के प्रकार

मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य के नाम से जाना जाता है।
यमस्मृतिमें पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक,काम्य,वृद्धि और पार्वण के नाम से जाना जाता है।
विश्वामित्र स्मृति, निर्णय सिन्धु तथा भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता हैं

1- नित्य श्राद्धः प्रतिदिन की क्रिया को ही 'नित्य' कहते हैं। अर्थात् रोज-रोज किए जानें वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता। अत्यंत आवश्यकता एवं असमर्थावस्थामें केवल जल से इस श्राद्ध को सम्पन्न किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अन्न, जल, दूध, कुशा, पुष्प व फल से प्रतिदिन श्राद्ध करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकता है।
2- नैमित्तक श्राद्ध- दूसरा नैमित्तिक श्राद्ध है जो किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है एक पितृ के उद्देश्य से किया जाता है, यह श्राद्ध विशेष अवसर पर किया जाता है। जैसे- पिता आदि की मृत्यु तिथि के दिन|इसे एकोदिष्ट भी कहा जाता है। एकोद्दिष्ट का मतलब किसी एक को निमित्त मानकर किए जाने वाला श्राद्ध जैसे किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। इसमें भी विश्वेदेवोंको स्थापित नहीं किया जाता। इसमें विश्वदेवा की पूजा नहीं की जाती है, केवल मात्र एक पिण्डदान दिया जाता है।
3- काम्य श्राद्धः किसी कामना विशेष या सिद्धि की प्राप्ति के लिए यह श्राद्ध किया जाता है। जैसे- पुत्र की प्राप्ति आदि। वह काम्य श्राद्ध के अन्तर्गत आता है।
4- वृद्धि श्राद्धः यह श्राद्ध सौभाग्य वृद्धि के लिए किया जाता है। इसमें वृद्धि की कामना रहती है जैसे संतान प्राप्ति या परिवार में विवाह आदि मांगलिक कार्यो में । इसे नान्दीश्राद्धया नान्दीमुखश्राद्ध के नाम भी जाना जाता है।
5- सपिंडन श्राद्ध- सपिण्डन शब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना। दरअसल शास्त्रों के अनुसार जब जीव की मृत्यु होती है, तो वह प्रेत हो जाता है। प्रेत से पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डन है। अर्थात् इस प्रक्रिया में प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जा सकता है। इसे ही सपिण्डनश्राद्ध कहते हैं। मृत व्यक्ति के 12 वें दिन पितरों से मिलने के लिए किया जाता है। इसमें प्रेत व पितरों के मिलन की इच्छा रहती है। ऐसी भी भावना रहती है कि प्रेत, पितरों की आत्माओं के साथ सहयोग का रुख रखें। इसे स्त्रियां भी कर सकती है।
6- पार्वण श्राद्धः जो अमावस्या के विधानके अनुरूप किया जाता है। पिता, दादा, परदादा, सपत्नीक और दादी, परदादी, व सपत्नीक के निमित्त किया जाता है। किसी पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावास्या अथवा पर्व की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध विश्वेदेवसहित होता है। इसमें दो विश्वदेवा की पूजा होती है।
7- गोष्ठी श्राद्धः गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है। जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किए जाते हैं। उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।
8- कर्मांग श्राद्धः यह श्राद्ध किसी संस्कार के अवसर पर किया जाता है। कर्मांग का सीधा साधा अर्थ कर्म का अंग होता है, अर्थात् किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं। उसे कर्मांग श्राद्ध कहते हैं। जैसे- सीमन्तोन्नयन, पुंसवन आदि संस्कारों के सम्पन्नता हेतु किया जाने वाला श्राद्ध इस श्राद्ध के अन्तर्गत आता है।
9- शुद्धयर्थ श्राद्धः शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे शुद्धयर्थश्राद्ध कहते हैं। जैसे शुद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। यह श्राद्ध परिवार की शुद्धता के लिए किया जाता है।
10- तीर्थ श्राद्धः यह श्राद्ध तीर्थ में जाने पर किया जाता है।
11- यात्रार्थ श्राद्धः यह श्राद्ध यात्रा की सफलता के लिए किया जाता है। यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है। जैसे- तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशान्तर जाने के उद्देश्य से जिस श्राद्ध को सम्पन्न कराना चाहिए वह यात्रार्थश्राद्ध ही है। यह घी द्वारा सम्पन्न होता है। इसीलिए इसे घृतश्राद्ध की भी उपमा दी गयी है।
12- पुष्टयर्थ श्राद्धः पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थश्राद्ध कहलाता है। शरीर के स्वास्थ्य व सुख समृद्धि के लिए त्रयोदशी तिथि, मघा नक्षत्र, वर्षा ऋतु व आश्विन मास का कृष्ण पक्ष इस श्राद्ध के लिए उत्तम माना जाता है।
सात से बारहवें प्रकार के श्राद्ध की प्रक्रिया सामान्य श्राद्ध जैसी ही होती है।

Gurudev
भुबनेश्वर पर्णकुटी गुना
9893946810

Saturday, 1 September 2018

वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी ०३/सितम्बर/२०१८ को वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = ०६:०६ (सूर्योदय के बाद) व्रत-पर्वों का निर्णय सूर्योदय कालीन तिथि के आधार पर और कुछ का रात्रि व्यापिनी तिथि के आधार पर किया जाता है। यद्यपि उदया तिथि ही प्रधान होती है, तथापि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का निर्णय रात्रिव्यापिनी अष्टमी के आधार पर किया जाता है। सप्तमीयुक्त अष्टमी को त्याग देना चाहिए और अष्टमी युक्त नवमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतोपवास करना चाहिये। यहां भी और अन्यत्र भी साधारणतः इस व्रत के विषय में दो मत विद्यमान हैं। स्मात्र्त लोग अर्द्ध रात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी के दिन भी व्रतोपवास करते हैं। लेकिन वैष्णवों को सप्तमी का किंचित मात्र भी स्पर्श मान्य नहीं। उनके यहां सप्तमी का स्पर्श होने पर द्वितीय दिवस ही व्रतोत्सव हेतु मान्य है। चाहे उस दिन अष्टमी क्षण मात्र के लिये ही क्यों न हो।


वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी ०३/सितम्बर/२०१८ को
वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = ०६:०६ (सूर्योदय के बाद)

पारण के दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से पहले समाप्त हो गये

दही हाण्डी - ३rd, सितम्बर को

अष्टमी तिथि प्रारम्भ = २/सितम्बर/२०१८ को २०:४७ बजे
मतलव :शाम को /8:47 मिनिट पर  प्रारम्भ

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अष्टमी तिथि समाप्त = ३/सितम्बर/२०१८ को १९:१९ बजे
मतलव:शाम को / 7:19 मिनिट पर समाप्त
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कुछ व्रत-पर्वों का निर्णय सूर्योदय कालीन तिथि के आधार पर और कुछ का रात्रि व्यापिनी तिथि के आधार पर किया जाता है।
यद्यपि उदया तिथि ही प्रधान होती है,

तथापि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का निर्णय रात्रिव्यापिनी अष्टमी के आधार पर किया जाता है।
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सप्तमीयुक्त अष्टमी को त्याग देना चाहिए और अष्टमी युक्त नवमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतोपवास करना चाहिये।

यहां भी और अन्यत्र भी साधारणतः इस व्रत के विषय में दो मत विद्यमान हैं।

स्मात्र्त लोग अर्द्ध रात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी के दिन भी व्रतोपवास करते हैं।

लेकिन वैष्णवों को सप्तमी का किंचित मात्र भी स्पर्श मान्य नहीं।

उनके यहां सप्तमी का स्पर्श होने पर द्वितीय दिवस ही व्रतोत्सव हेतु मान्य है। चाहे उस दिन अष्टमी क्षण मात्र के लिये ही क्यों न हो।

देश, काल और परिस्थिति में विषयान्तर्गत प्रामाणिकता की दृष्टि से सर्वधर्मशास्त्रों में ‘निर्णयसिंधु’ ही श्रेयस्कर है।

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Gurudev -bhubneshwar
Parnkuti guna
जन्माष्टमी पद्मपुराण-
उत्तराखंड श्रीकृष्णावतार की कथा में वर्णन मिलता है कि ‘‘दसवां महीना आने पर भादों मास की कृष्णा अष्टमी को आधी रात के समय श्री हरि का अवतार हुआ।’’

महाभारत -खिलभाग हरिवंश-

विष्णु पर्व - 4/17 के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए, उस समय अभिजित नामक मुहूत्र्त था, रोहिणी नक्षत्र का योग होने से अष्टमी की वह रात जयंती कहलाती थी और विजय नामक विशिष्ट मुहूत्र्त व्यतीत हो रहा था।’’

श्रीमद्भागवत-

10/3/1 के अनुसार भाद्रमास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और अर्द्ध रात्रि के समय भगवान् विष्णु माता देवकी के गर्भ से प्रकट हुए।

गर्ग संहिता गोलोकखंड-

11/22-24 के अनुसार ‘‘भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, रोहिणी नक्षत्र, हर्षण-योग, अष्टमी तिथि, आधी रात के समय, चंद्रोदय काल, वृषभ लग्न में माता देवकी के गर्भ से साक्षात् श्री हरि प्रकट हुए।’’

ब्रह्मवैवर्त पुराण-

श्रीकृष्ण जन्मखंड-7 के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग संपन्न हो गया था।

जब अर्ध चंद्रमा का उदय हुआ तब भगवान श्रीकृष्ण दिव्य रूप धारण करके माता देवकी के हृदय कमल के कोश से प्रकट हो गए।

ब्रह्मवैवर्त पुराण-

श्रीकृष्ण जन्मखंड-8 के अनुसार सप्तमी तिथि के दिन व्रती पुरुष को हविष्यान्न भोजन करके संयम पूर्वक रहना चाहिए।

सप्तमी की रात्रि व्यतीत होने पर अरुणोदय की बेला में उठकर व्रती पुरुष प्रातः कालिक कृत्य पूर्ण करने के अनंतर स्नानपूर्वक संकल्प करें।

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810