ज्योतिष समाधान

Tuesday, 31 July 2018

महामृत्युंजय अनुष्ठान एबं शिवार्चन के लियेआबश्यक पूजन सामग्री लिस्ट सभी प्रकार की जटिल समस्याओ के समाधान हेतु शीघ्र सम्पर्क करे एबम अपनी कुंडली दिखाकर उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करे ।

महामृत्युंजय अनुष्ठान एबं शिवार्चन के लियेआबश्यक पूजन सामग्री लिस्ट
सभी प्रकार की जटिल समस्याओ के समाधान हेतु शीघ्र सम्पर्क करे एबम अपनी कुंडली दिखाकर उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करे ।

सम्पर्क सूत्र पंडित जी श्री परमेस्वर दयाल जी शास्त्री तिलकचोक
मधुसुदनगण मोबाइल नंबर 09893397835

(पूजन समग्री  आवश्यकता अनुसार कम और ज्यादा कर सकते है ) =========================
1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम
३】अगरबत्ती------------------- 3पैकिट
४】कपूर------------------------- 50 ग्राम
५】केसर------------------------- 1डिव्वि
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत ----------------- 11नग्
८】चावल------------------------ 05 किलो
९】अबीर-------------------------50 ग्राम
१०】गुलाल, -----------------10 0ग्राम
११】अभ्रक-------------------
१२】सिंदूर --------------------100 ग्राम
१३】रोली, --------------------100ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)-------- 200 ग्राम
१५】नारियल ----------------- 11 नग्
१६】सरसो----------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
१९】शकर-----------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------ 01किलो
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी----------------1 नग्
२४】रंग लाल----------------------10ग्राम
२५】रंग काला --------------------10ग्राम
२६】रंग हरा -----------------------10ग्राम
२७】रंग पिला ---------------------10ग्राम
२८】चंदन मूठा--------------------1 नग्
२९】धुप बत्ती ---------------------2 पैकिट
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३०】सप्तमृत्तिका

1】 हाथी के स्थान की मिट्टि-----------50ग्राम
२】घोड़ा बांदने के स्थान की मिटटी--50ग्राम
३】बॉबी की मिटटी---------------------50ग्राम
४】दीमक की मिटटी-------------------50ग्राम
५】नदी संगम की मिटटी---------------50ग्राम
६】तालाब की मिटटी-------------------50ग्राम
७】गौ शाला की मिटटी-----------------50ग्राम
राज द्वार की मिटटी-----------------------50ग्राम

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३१】पंचगव्य
१】 गाय का गोबर -----------------50 ग्राम
२】गौ मूत्र-----------------------------50ग्राम
३】गौ घृत------------------------------50ग्राम
4】गाय दूध----------------------------50ग्राम
५】गाय का दही ---------------------50ग्राम
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३२】सप्त धान्य-

कुलबजन--------100ग्राम

१】 जौ-----------
२】गेहूँ-
३】चावल-
४】तिल-
५】काँगनी-
६】उड़द-
७】मूँग
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३३】कुशा
३४】दूर्वा
35】पुष्प कई प्रकार के
३६】गंगाजल

३७】ऋतुफल पांच प्रकार के -----

1 किलो

38】पंच पल्लव

१】बड़,
२】 गूलर,
३】पीपल,
४】आम
५】पाकर के पत्ते)
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३९】बिल्वपत्र
४०】शमीपत्र
४१】सर्वऔषधि
४२】अर्पित करने हेतु पुरुष बस्त्र
४३】मता जी को अर्पित करने हेतु सौ भाग्यवस्त्र
44】जल कलश तांबे का मिट्टी का)

४५】 बस्त्र

१】सफेद कपड़ा दोमीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर)
३】काला कपड़ा 2मीटर)
४】हरा कपड़ा 2मीटर)

४६】पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)

४७】दीपक
४८】तुलसी दल
४८】केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित)
49】बन्दनवार
50】पान के पत्ते ------------11 नग
51】रुई
५२】भस्म
53】ध्वजालाल-1 पचरंगा -1
54】प्रसाद(अनुमानि)
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55】 अगर ब्राहम्णो के द्वारा अनुष्ठान करवा रहे है तो उनके लिए नित्य उपयोगी सामान
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सावुन नहाने के---------------10 सावुन कपड़े
धोने के --------10
सर्फ कपडे धोने का ---------1 किलो
मंजन -------------------------100ग्राम
तेल ----------------------------100ग्राम
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56】========ब्राह्मण बरण सामग्री

1】धोती
२】दुपट्टा
३】आंगोछा
४】आसन
५】माला
६】गौमुखी
७】लोटा
८】पंचपात्र
९】चमची
१०】तष्टा
११】अर्घा
१२】 डाभ अंगूठी
=============================५७】=========नवग्रह समिधा==

१】आक
२】 छोला
३】खैर
४】आंधी झाड़ा
५】पीपल
६】उमर(गूलर)
७】शमी
८】दूर्वा
९】कुशा

58)हवन सामग्री अनुमानित

1)तिल के आधे चावल चावल के आधे जौ   

 शकर घी ओषधियाँ अनुमानित 

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संपर्क -किसी भी प्रकार की पूजा जैसे -

सतचण्डीपाठ ,
नवरात्रिपाठ ,
महामृत्यंजय ,
वास्तु पूजन,
ग्रह प्रवेश ,

श्री मदभागवत कथा,
श्री राम कथा ,

करवाने हेतु एबम ज्योतिष द्वारा समाधान,आदि की जानकारी के लिए

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संपर्क सूत्र पंडित -परमेश्वर दयाल शास्त्री (मधुसुदनगड़) 09893397835
============================= गरूदेव -भुबनेश्वर दयाल शास्त्री (पर्णकुटी गुना) 09893946810
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पंडित -घनश्याम शास्त्री(गुना पर्णकुटी ) 09893983084

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विशेष संपर्क
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी आश्रम गुना
ऐ -बी रोड
दा होटल सारा के सामने
09893946810 =============================

Sunday, 29 July 2018

साढ़ेसाती से परेशान लोग भी सावन में शिव पूजन करके इसके प्रभावों को कम कर सकते हैं। इसके लिए रोजाना शिव जी पर जल चढ़ाएं और शनिदेव के मंत्र ‘ऊं प्रां प्रीं स: शनिचश्चार नम:’ का 108 बार जप करें। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए इन्हे करनी चाहिए सावन शिव जी की पूजा :

इस साल का सावन का महीना बहुत खास रहने वाला है क्योंकि 19 साल बाद एक दुर्लभ संयोग बना है। गुरुदेब भुबनेश्वर पर्णकुटी वालो ने बताया
कि विशेष बात यह है कि श्रावण मास में इस बार सावन का महीना 28 या 29 दिनों का नहीं रहेगा बल्कि पूरे 30 दिनों तक चलेगा। ऐसा संयोग 19 साल बाद बन रहा है।

दरअसल इस बार का सावन 30 दिनों का होने के पीछे अधिकमास पड़ने के कारण हुआ है।

28 जुलाई को सावन का पहला दिन होगा जो कि 26 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन समाप्त होगा।

सावन का पहला सोमवार 30 जुलाई को पड़ेगा।
इस सावन माह में 4 सोमवार पड़ने के कारण विशेष संयोग बन रहा है।

पंचांग के मुताबिक, पिछले साल सावन 10 जुलाई से शुरू होकर 7अगस्त तक 29 दिन का था।

बहुत से भक्त श्रावण माह के पहले सोमवार से 16 सोमवार के व्रत शुरू करते है।

क्योंकि 16 सोमवार के व्रत श्रावण के पहले सोमवार से ही प्रारंभ किया जाता है।

श्रावण माह के सभी मंगलवार व्रत देवी पार्वती के लिए किया जाते है जो भगवान शिव की अर्धांगिनी है।
सावन माह में किये जाने वाले मंगलवार व्रत को मंगला गौरी व्रत भी कहा जाता है।
कुँवारी कन्याओ को विबाह  में रुकावट  हो तो यह ब्रत उनके लिए अचूक उपाय का कार्य करता है  दाम्पत्य सुख के भी लिए अचूक ब्रत है ।

इसी दिन शिव जी धरती पर प्रकट होकर अपने ससुराल गए थे।
जब शिव जी अपने ससुराल पहुंचे तो उनका स्वागत अर्ध्य और अभिषेक से हुआ और यह सब देखकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए।
उसी समय से शिवजी का अभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है।
दूसरा कारण

समुद्र मंथन सावन के महीने में ही किया गया था।
समुद्र मंथन से जो विष निकला था उसके कारण पुरे ब्रह्मांड के जीवों पर खतरा मंडराने लगा था।
तब सभी के प्राणों की रक्षा करने के लिए शिवजी ने पूरा हलाहल विष स्वयं पी लिया था जिसके कारण उनका शरीर नीला पड़ने लगा। इस स्थिति में देवताओं ने शिवजी को जल और दूध अर्पित किया ताकि उन्हें राहत मिले।
तभी से शिव जी पर दूध और जल चढाने का महत्त्व माना गया है।

साढेसाती से परेशान लोगो को यह श्रावण खास है क्योंकि
इस साल सावन शनिवार से ही शुरू हुआ है ऐसे में सावन में भगवान शिव का पूजन करने से दोगुना लाभ मिलेगा।
जिन लोगों पर इस दौरान शनि की साढ़े साती चल रही है वे शिवपूजन करके इसके बुरे प्रभावों को कम कर सकते हैं।
विशेषकर सावन के शनिवार के दिन।

सावन के शनिवार के दिन शिव जी का रुद्राभिषेक करके विशेष कृपा पा सकते हैं।

साढ़ेसाती से पीड़ित लोग यूँ करें सावन में शिव जी का पूजन :

साढ़ेसाती से परेशान लोग भी सावन में शिव पूजन करके इसके प्रभावों को कम कर सकते हैं।
इसके लिए रोजाना शिव जी पर जल चढ़ाएं और शनिदेव के मंत्र ‘ऊं प्रां प्रीं स: शनिचश्चार नम:’ का 108 बार जप करें।

शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए इन्हे करनी चाहिए सावन शिव जी की पूजा :

इस समय
वृश्चिक,
धनु
और मकर राशि में शनि की साढ़े साती चल रही है।

मकर राशि में शनि साढ़े साती का प्रथम चरण है,
जबकि धनु में द्वितीया और

वृश्चिक में अंतिम चरण है।

इन तीनों राशि के जातक सावन के प्रत्येक शनिवार को शिवलिंग पूजा और सुंदरकांड का पाठ करें।

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810

Wednesday, 18 July 2018

चुनाव लड़ने से पहले अपनी कुंडली मे देखे की कहि आपकी कुंडली मे राजभंग योग तो नही है क्योंकि राज योग होना और राजभंग योग होना दोनों बाते देखना जरूरी है। जिस मनुष्य की कुंडली में सभी योग पूर्ण रूप से घटित हो जाते हैं, वह मनुष्य चक्रवर्ती सम्राट बनता है। इसमें नीचभंग राजयोग भी प्रमुख माने जाते हैं। राजयोग होने पर व्यक्ति को उच्च पद, मान सम्मान, धन तथा अन्य प्रकार की सुख-संपत्ति प्राप्त होती हैं।

राजयोग होने पर व्यक्ति को उच्च पद, मान सम्मान, धन तथा अन्य प्रकार की सुख-संपत्ति प्राप्त होती हैं।
अगर जन्म कुंडली के नौवें या दसवें घर में सही ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग का निर्माण होता है।
जन्म कुंडली में नौवां स्थान भाग्य का और दसवां कर्म का स्थान होता है।
कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही सबसे ज्यादा सुख और समृद्धि प्राप्त करता है।
राजयोग का आंकलन करने के लिए जन्म कुंडली में लग्न को आधार बनाया जाता है।

कुंडली के लग्न में सही ग्रह मौजूद होते हैं तो राजयोग का निर्माण होता है।

कुंडली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है।
कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र-मंगल का योग बन रहा है तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है, मान-सम्मान मिलता है, सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।
कुंडली में राजयोग का अध्ययन करते वक़्त अन्य शुभ और अशुभ ग्रहों के फलों का भी अध्ययन जरुरी है।
इनके कारण राजयोग का प्रभाव कम या ज्यादा हो सकता है।

राजयोग वे ग्रह स्थितियां हैं जिनसे व्यक्ति विपुल धन संपदा, पद, गौरव, सुख और ऐश्वर्य पाता है।
विपरीत राजयोग में व्यक्ति को प्राप्तियां तो होती हैं लेकिन वह उनका आनंद नहीं ले पाता।
जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में ये ज्योतिषीय योग बनता है तो व्यक्ति राज्याधिकारी बनता है।
जब कुंडली में 2, 3, 5, 6, 8, 9 तथा 11, 12 में से किसी स्थान में बृहस्पति की स्थिति हो और शुक्र 8वें स्थान में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति में जन्म लेने वाला जातक राज्याधिकारी ही बनता है।
कभी-कभी हम लोग किसी साधारण परिवार में जन्मे बालक के राजसी लक्षण देखते हैं जो इसी योग के कारण बनते हैं।

जब भी मनुष्य कोई कोशिश करता है या किसी चीज़ की इच्छा करता है तो उसके प्रयत्न विभिन्न योगों के अनुसार ही विकसित होते हैं।

निम्नलिखित स्थितियों में राजयोगों का सृजन होता है: 

1.  जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे की राशि में होते हैं तो शुभ फल प्राप्त होते हैं।
2. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे से दृष्टि संबंध में हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं।
3. कुंडली में ग्रहों की परस्पर युति होने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं।
4.  कुंडली में एक ग्रह दूसरे ग्रह को संदर्भित करता हो तो शुभ। 
5. नवम और पंचम स्‍थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्‍द्राधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी बताया गया है।
6. योगकारक ग्रहों (यानी केन्‍द्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहों की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है।

• योगकारक ग्रहों से संबंध करने वाला पापी ग्रह अपनी दशा में तथा योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में जिस प्रमाण में उसका स्‍वयं का बल है, तदनुसार वह योगज फल देगा। (यानी पापी ग्रह भी एक कोण से राजयोग में कारकत्‍व की भूमिका निभा सकता है।)

• धर्म और कर्म भाव के अधिपति यानी नवमेश और दशमेश यदि क्रमश: अष्‍टमेश और लाभेश हों तो इनका संबंध योगकारक नहीं बन सकता है। (उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न) इस स्थिति को राजयोग भंग भी मान सकते हैं।

• यदि मारक ग्रहों की अंतरदशा में राजयोग आरंभ हो तो वह अंतरदशा मनुष्‍य को उत्‍तरोतर राज्‍याधिकार से केवल प्रसिद्ध कर देती है। पूर्ण सुख नहीं दे पाती है।

• अगर राजयोग करने वाले ग्रहों के संबंधी शुभग्रहों की अंतरदशा में राजयोग का आरंभ हो तो राज्‍य से सुख और प्रतिष्‍ठा बढ़ती है। राजयोग करने वाले से संबंध न करने वाले शुभग्रहों की दशा प्रारंभ हो तो फल सम होते हैं। फलों में अधिकता या न्‍यूनता नहीं दिखाई देगी। जैसा है वैसा ही बना रहेगा।

• राहु-केतु यदि केन्‍द्र (विशेषकर चतुर्थ और दशम स्‍थान में) अथवा त्रिकोण में स्थित होकर किसी भी ग्रह के साथ संबंध नहीं करते हों तो उनकी महादशा में योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में उन ग्रहों के अनुसार, शुभयोगकारक फल देते हैं। (यानी शुभारुढ़ राहु-केतु शुभ संबंध की अपेक्षा नहीं रखते। बस वे पाप संबंधी नहीं होने चाहिए तभी कहे हुए अनुसार फलदायक होते हैं।) राजयोग रहित शुभग्रहों की अंतरदशा में शुभफल होगा, ऐसा समझना चाहिए।

• दशम स्‍थान का स्‍वामी लग्‍न में और लग्‍न का स्‍वामी दशम में, ऐसा योग हो तो वह राजयोग समझना चाहिए। इस योग पर विख्‍यात और विजयी ऐसा मनुष्‍य होता है।

• नवम स्‍थान का स्‍वामी दशम में और दशम स्‍थान का स्‍वामी नवम में हो तो ऐसा योग राजयोग होता है। इस योग पर विख्‍यात और विजयी पुरुष होता है।

• जन्मपत्री में जो नीच ग्रह अपने उच्चांश में बली हो तो व्यक्ति राजा के समान ऐश्वर्य भोगता है। जबकि उच्च के ग्रह अपने नीचांशों में होने पर व्यक्ति को गरीबी में जीवन बिताना पड़ता है।

• जिस मनुष्य का पूर्ण बली चन्द्रमा लग्न को छोड़कर शेष केन्द्र या त्रिकोण (4,7,10,5,9) में यदि पूर्ण बली शुक्र या बृहस्पति से युति बनाता हो तो वह मनुष्य साक्षात् राजा के समान ही सुख-संपत्ति और वैभवपूर्ण जीवन जीता है।

• किसी व्यक्ति के जन्म समय में जो भी ग्रह अपनी नीच संज्ञा वाली राशि में स्थित हो या बैठा हो, यदि उस राशि का स्वामी और उसकी उच्च संज्ञा राशि का स्वामी त्रिकोण (5,9) या केंद्र (1,4,7,10) में बैठा हो तो वह मनुष्य या तो राजा होता है या फिर चारों दिशाओं में घूमने वाला यशस्वी, धार्मिक नेता होता है। ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, योगी, शंकराचार्य या इसी तरह के पद पर विराजमान होता है।

• जिस मनुष्य का कर्क लग्न बृहस्पति से युक्त हो, शुक्र धर्म स्थान में विराजमान हो तथा शनि व मंगल सातवें घर में बैठे हों तो वह मनुष्य सम्राट होता है।

• किसी व्यक्ति के जन्म के समय जो ग्रह नीच राशि में हो, उस राशि का स्वामी या उसकी उच्चराशि का स्वामी लग्न में हो या चंद्रमा से केंद्र (1,4,7,10) में हो तो वह व्यक्ति स्वभाव से अत्यंत धार्मिक तथा चक्रवर्ती सम्राट होता है।

• जिस व्यक्ति के दूसरे, पांचवें तथा नवें या ग्यारहवें घर में सभी शुभ ग्रह विराजमान हो तो वह मनुष्य धनवान होता है। यदि लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त होकर केंद्र त्रिकोण में उच्च या स्वगृही बैठा हो तो मनुष्य बहुत धनवान राजनीतिज्ञ होता है।

• यदि व्यक्ति की कुंडली में नवमेश अपने नवांशनाथ के साथ केन्द्र में पंचमेश से युति बना रहा हो तो ऐसे व्यक्ति का राजा भी सम्मान करते हैं। प्राय: ऐसे लोग उच्च पदस्थ सरकारी अफसर बनते हैं।

• यदि मेष में गुरु, धन में शनि और चन्द्रमा, दशम में राहु-शुक्र साथ बैठे हों तो व्यक्ति बहुत बड़ा राजनेता बनता है। यदि सभी ग्रह (2,6,7,12) में बैठे हो तो व्यक्ति बहुत ही बड़ा प्रभावशाली राजपुरुष होता है।

हर राशि में राजयोग निर्माण के लिए अलग-अलग दशा होती है:

1 मेष लग्न- मेष लग्न में मंगल और बृहस्पति अगर कुंडली के नौवें या दसवें भाव में विराजमान होते हैं तो यह राजयोग कारक बन जाता है।

2 वृष लग्न- वृष लग्न में शुक्र और शनि अगर नौवें या दसवें स्थान पर विराजमान होते हैं तो यह राजयोग का निर्माण कर देते हैं। इस लग्न में शनि राजयोग के लिए अहम कारक बताया जाता है।

3 मिथुन लग्न- मिथुन लग्न में अगर बुध या शनि कुंडली के नौवें या दसवें घर में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले जातक का जीवन राजाओं जैसा बन जाता है।

4 कर्क लग्न- कर्क लग्न में अगर चंद्रमा और ब्रहस्पति भाग्य या कर्म के स्थान पर मौजूद होते हैं तो यह केंद्र त्रिकोण राज योग बना देते हैं। इस लग्न वालों के लिए बृहस्पति और चन्द्रमा बेहद शुभ ग्रह भी बताये जाते हैं।

5 सिंह लग्न- सिंह लग्न के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य और मंगल दशम या भाग्य स्थान में बैठ जाते हैं तो जातक के जीवन में राज योग कारक का निर्माण हो जाता है।

6 कन्या लग्न- कन्या लग्न में बुध और शुक्र अगर भाग्य स्थान या दशम भाव में एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।

7 तुला लग्न- तुला लग्न वालों का भी शुक्र या बुध अगर कुंडली के नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाता है तो इस ग्रहों का शुभ असर जातक को राजयोग के रूप में प्राप्त होने लगता है।
8 वृश्चिक लग्न- वृश्चिक लग्न में सूर्य और मंगल, भाग्य स्थान या कर्म स्थान (नौवें या दसवें) भाव में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले का जीवन राजाओं जैसा हो जाता है। यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि अगर मंगल और चंद्रमा भी भाग्य या कर्म स्थान पर आ जायें तो यह शुभ रहता है।
9 धनु लग्न- धनु लग्न के जातकों की कुंडली में राजयोग के कारक, बृहस्पति और सूर्य माने जाते हैं। यह दोनों ग्रह अगर नौवें या दसवें घर में एक साथ बैठ जायें तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
10 मकर लग्न- मकर लग्न वाली की कुंडली में अगर शनि और बुध की युति, भाग्य या कर्म स्थान पर मौजूद होती है तो राजयोग बन जाता है।
11 कुंभ लग्न- कुंभ लग्न वालों का अगर शुक्र और शनि नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
12 मीन लग्न- मीन लग्न वालों का अगर बृहस्पति और मंगल जन्म कुंडली के नवें या दशम स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाते हैं तो यह राज योग बना देते हैं।

विभिन्न प्रकार के राजयोग:

• लक्ष्मी योग- कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र-मंगल का योग बन रहा है तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है। मान-सम्मान मिलता है। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।

• रूचक योग- मंगल केंद्र भाव में होकर अपने मूल त्रिकोण (पहला, पांचवा और नवा भाव), स्वग्रही (मेष या वृश्चिक में हो तो) अथवा उच्च राशि (मकर राशि) का हो तो रूचक योग बनता है। रूचक योग होने पर व्यक्ति बलवान, साहसी, तेजस्वी, उच्च स्तरीय वाहन रखने वाला होता है। इस योग में जन्मा व्यक्ति विशेष पद प्राप्त करता है।

• भद्र योग- बुध केंद्र में मूल त्रिकोण स्वगृही (मिथुन या कन्या राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कन्या) का हो तो भद्र योग बनता है। इस योग से व्यक्ति उच्च व्यवसायी होता है। व्यक्ति अपने प्रबंधन, कौशल, बुद्धि-विवेक का उपयोग करते हुए धन कमाता है। यह योग सप्तम भाव में होता है तो व्यक्ति देश का जाना माना उद्योगपति बन जाता है।

• शश योग- यदि कुंडली में शनि की खुद की राशि मकर या कुम्भ में हो या उच्च राशि (तुला राशि) का हो या मूल त्रिकोण में हो तो शश योग बनता है। यह योग सप्तम भाव या दशम भाव में हो तो व्यक्ति अपार धन-सम्पति का स्वामी होता है। व्यवसाय और नौकरी के क्षेत्र में ख्याति और उच्च पद को प्राप्त करता है।

• गजकेसरी योग- जिसकी कुंडली में शुभ गजकेसरी योग होता है, वह बुद्धिमान होने के साथ ही प्रतिभाशाली भी होता है। इनका व्यक्तित्व गंभीर व प्रभावशाली भी होता है। समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करते हैं। शुभ योग के लिए आवश्यक है कि गुरु व चंद्र दोनों ही नीच के नहीं होने चाहिए। साथ ही, शनि या राहु जैसे पाप ग्रहों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

• सिंघासन योग- अगर सभी ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें घर में बैठ जाए तो कुंडली में सिंघासन योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति शासन अधिकारी बनता है और नाम प्राप्त करता है।

• चतुःसार योग- अगर कुंडली में ग्रह मेष, कर्क तुला और मकर राशि में स्थित हो तो ये योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति इच्छित सफलता जीवन में प्राप्त करता है और किसी भी समस्या से आसानी से बाहर आ जाता है।

• श्रीनाथ योग- अगर लग्न का स्वामी, सातवें भाव का स्वामी दसवें घर में मौजूद हो और दसवें घर का स्वामी नवें घर के स्वामी के साथ मौजूद हो तो श्रीनाथ योग का निर्माण होता है। इसके प्रभाव से जातक को धन, नाम, यश, वैभव की प्राप्ति होती है।

• विपरीत राजयोग - त्रिक स्थानों के स्वामी त्रिक स्थानों में हो या युति अथवा दृष्टि संबंध बनते हों तो विपरीत राजयोग बनता है। यह व्यक्ति को अत्यंत धनवान और खुशहाल बनाता है इस योग में व्यक्ति महाराजाओं के समान सुख प्राप्त करता है। ज्योतिष ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह जब स्वयं अशुभ भाव में होता है तो अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाते है।

• हंस योग- बृहस्पति केंद्र भाव में होकर मूल त्रिकोण स्वगृही (धनु या मीन राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कर्क राशि) का हो तब हंस योग होता है। यह योग व्यक्ति को सुन्दर, हंसमुख, मिलसार, विनम्र और धन-सम्पति वाला बनाता है। व्यक्ति पुण्य कर्मों में रूचि रखने वाला, दयालु, शास्त्र का ज्ञान रखने वाला होता है।

• मालव्य योग- कुंडली के केंद्र भावों में स्थित शुक्र मूल त्रिकोण अथवा स्वगृही (वृष या तुला राशि में हो) या उच्च (मीन राशि) का हो तो मालव्य योग बनता है। इस योग से व्यक्ति सुन्दर, गुणी, तेजस्वी, धैर्यवान, धनी तथा सुख-सुविधाएं प्राप्त करता है।

गुरुदेब
भुबनेश्वर
9893946810

Monday, 9 July 2018

राशिफल के माध्यम से जानते हैं चंद्र ग्रहण का प्रभावः- अपनी राशि के अनुसार पढ़ेंः

चंद्र ग्रहण राशिफल ( 27-28 जुलाई 2018) साल 2018 में 27-28 जुलाई इस साल दूसरा व अंतिम चंद्र ग्रहण घटित होगा।
यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा और

भारत में  यह चंद्र ग्रहण दिखाई देगा।
भारतीय समय के अनुसार इस ग्रहण की समयावधि

रात्रि 11:56:26 बजे से अगले दिन तड़के 03:48:59 बजे तक रहेगी।

ज्योतिषीय दृष्टि से यह चंद्र ग्रहण उत्तराषाढ़ा नक्षत्र तथा मकर राशि में लगेगा।

उत्तराषाढ़ा सूर्य का नक्षत्र है, अतः इस नक्षत्र से संंबंधित सभी राशियों पर ग्रहण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

हालांकि हर राशि पर इसका असर भिन्न-भिन्न होगा।
इस राशिफल के माध्यम से जानते हैं चंद्र ग्रहण का प्रभावः-

अपनी राशि के अनुसार पढ़ेंः

मेष

पारिवारिक जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
किसी बात को लेकर मन भय बना रह सकता है।
निजी जीवन में परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं। सफलता पाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।

वृषभ
मानसिक तनाव रह सकता है।
जीवन में किसी तरह का विवाद हो सकता है। संतान को किसी शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है।

मिथुन

शत्रुओं से किसी तरह का ख़तरा हो सकता है, इसलिए सावधान रहें। आय के साथ-साथ व्यय में भी इज़ाफ़ा होगा और इस कारण आपकी आय भी सामान्य रहेगी।

कर्क

जीवनसाथी से मतभेद होने के कारण आपका वैवाहिक जीवन थोड़ा अशांत रह सकता है। वहीं बिजनेस में पार्टनर के साथ विवाद होने की संभावना है।

सिंह

यात्रा से आपको थकान हो सकती है। आर्थिक मामलों में धन हानि होने की संभावना है। अपनी सेहत का ख़्याल रखें आपको किसी प्रकार शारीरिक कष्ट हो सकता है।

कन्या

मन में किसी बात को लेकर बेचैनी बनी रह सकती है। आमदनी की अपेक्षा ख़र्च ज़्यादा हो सकता है। कार्यों में सफलता पाने के लिए आपको जमकर मेहनत करनी पड़ सकती है।

तुला

जीवन में अशांति और अस्थिरता बनी रह सकती है। पारिवारिक जीवन में समस्याएं आ सकती हैं। माता जी की सेहत में कमज़ोर रह सकती है, इसलिए उनका ख़्याल रखें।

वृश्चिक

आप नौकरी-व्यवसाय में तरक्की करेंगे। धन लाभ के भी योग हैं। कार्यस्थल पर पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। अपने प्रत्येक कार्य को आप अच्छी तरह से करेंगे।

धनु मानसिक तनाव आपकी सेहत पर बुरा असर डाल सकता है। आर्थिक मामलों में सावधान रहें, आपको धन हानि हो सकती है। काम अथवा व्यवसाय के चलते घर से दूर भी जाना पड़ सकता है।

मकर

वाहन चलाते समय सावधानी बरतें। आपकी सेहत कमज़ोर रह सकती है। मानसिक तनाव सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है अतः बेवज़ह की चिंता न करें।

कुंभ

परिवार में किसी प्रकार की समस्या आ सकती है। परिजनों के बीच मनमुटाव देखने को मिल सकता है। धन हानि होने की संभावना है। व्यर्थ की चिंता न करें।

मीन

आप भौतिक सुख-सुविधाओं का लाभ उठाएंगे। भाई-बहनों को किसी प्रकार का लाभ हो सकता है। इस अवधि में आपका साहस और मनोबल बढ़ेगा।
  गुरुदेब भुबनेश्वर
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