Thursday, 27 April 2017

पूजन सामग्री

गोलसुपारी १०
फल
दूध ५०ग्राम
शकर १००ग्राम
गेंहू १कि०
श्री फल ५
मेंहदी ५०ग्राम
बादाम मिगि५०ग्राम
काजू५०ग्राम
किशमिश५०ग्राम
अगर बत्ती
हवन सामग्री२००ग्राम
यज्ञोपवीत५
पान ११
दही ५०ग्राम
गुड ५०ग्राम
चावल १कि०
रोली १००ग्राम
लाल वस्त्र१मी०
पीला वस्त्र १मी०
सिंदूर २०ग्राम
दीपक
रूई
घी ५००ग्राम
तोरण
थम्भ
पटली
पुष्प
शहद २०ग्राम
वताशा
लाजा २००ग्राम
सूप
बाजोट (चौकी)१
समिधा
सरसों २०ग्राम
कलश
हल्दी पिसी १००ग्राम
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सूर्य दान सामग्री
माणिक्य
गोधूम
लाल वस्त्र सूती३मी०
लाल चंदन
केशर चंदन इत्र
स्वर्ण
केशर
मूंगा
घृत
रक्त धान्य

नक्षत्रो का ज्योतिष में कितना महत्व है

इधर कुछ वर्षों से नक्षत्रों के अध्ययन की ओर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इस दिशा में केएस कृष्णमूर्ति का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

उनके अनुसार जिस ग्रह की दशा होती है, वह अपने आधिपत्य द्वारा जिन भावों का द्योतक होता है, उन भावों के द्वारा समस्या के मूल भावों को दर्शाता है और इससे आगे नहीं बढ़ता है।

वह पूर्ण समस्या का समाधान नहीं करता है। कृष्णमूर्ति के अनुसार महत्व उस नक्षत्र का भी है जिसमें दशानाथ स्थित होता है।

उस नक्षत्र का स्वामी जिन भावों का स्वामी होता है, समस्या उन भावों से संबंधित अधिक होती है।

मान लीजिए कि किसी जन्म कुंडली में सूर्य की दशा चल रही है, लग्न कर्क है और सूर्य तृतीय भाव में मंगल के नक्षत्र में स्थित है, तो घटनाएं मंगल के आधिपत्य द्वारा प्रकाशित होंगी।

मंगल चूंकि कर्क लग्न वाले के लिए दशमेश और पंचमेश होता है, सूर्य अपनी दशा में मान (दशम भाव) तथा पुत्र (पंचम भाव) संबंधी घटनाओं को जन्म देगा।

इसी प्रकार मान लीजिए कि किसी मकर लग्न वाले व्यक्ति की शुक्र की दशा चल रही है और वह शुक्र पंचम भाव में सूर्य के नक्षत्र में है तो शुक्र की दशा में घटनाएं सूर्य द्वारा प्रकट होंगी।

सूर्य अष्टमेश है अत: अष्टम भाव से संबंध रखने वाली घटनाएं होंगी।
जैसे- अपमान, रोग अथवा इंशोरेंस, नष्ट वस्तु की प्राप्ति आदि।

इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की तुला लग्न है और सूर्य की दशा है और तृतीय भाव में शुक्र के नक्षत्र में स्थित है तो ऐसी स्थिति में फल अधिकतर शुक्र के आधिपत्य द्वारा व्यक्त होगा।

शुक्र तुला लग्न वालों का लग्नेश और अष्टमेश होता है, इसलिए फल लग्न तथा अष्टम भाव से संबंधित होगा। जैसे धन, सम्मान की प्राप्ति, बीमारी आदि। यद्यपि नक्षत्र का स्वामी अपने आधिपत्य द्वारा घटना के स्वरूप को दिखला देगा परन्तु उसका परिणाम जातक के लिए शुभ होगा अथवा अशुभ, इस बात का निर्णय नक्षत्रांश का स्वामी करेगा।

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि व्यक्ति का मकर लग्न है और सूर्य की दशा भुक्ति है और सूर्य धनु राशि में पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में स्थित है तो सूर्य स्पष्ट 8-15-0 है तो सूर्य के नक्षत्रांश में है और शुक्र का फल करेगा।

अब शुक्र चूंकि मकर लग्न वालों के लिए योग कारक ग्रह है क्योंकि वह दशम केंद्र और पंचम त्रिकोण का स्वामी है, वह द्वादश संबंधी शुभ फल करेगा, यदि शुक्र कुंडली में बलवान है तो। इस पद्धति में प्रत्येक नक्षत्र के 9 भाग किए गए हैं, परन्तु वे आपस में बराबर नहीं हैं। उन भागों की मात्रा उस नक्षत्र के स्वामी पर निर्भर है। इसमें नक्षत्र को नौ भागों में ऐसे विभक्त किया गया है कि प्रत्येक भाग का अनुपात दूसरे भाग से वही हो जो उसकी दशा के वर्षों का दूसरे की दशा के वर्षों से हैं।

उदाहरण के लिए सूर्य स्पष्ट 8-15-0 है तो इसका अर्थ यह हुआ कि पूर्वाषाढ़ का एक अंश 40 कला व्यतीत हुआ। यह नक्षत्र शुक्र का है। अत: इसमें पहला नक्षत्रांश भी शुक्र ही होगा।

इस प्रकार जब सूर्य स्पष्ट 8-15-0 हो तो सूर्य, शुक्र के पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ और उसका नक्षत्रांश भी शुक्र का ही हुआ। अत: यदि शुक्र शुभ है तो सूर्य राजयोग का फल देगा,

यद्यपि इसका आधिपत्य उत्तम नहीं है। इस प्रकार कृष्णमूर्ति पद्धति नक्षत्रांश के स्वामी द्वारा फल के अच्छा-बुरा होने का निर्णय करता है।

एक और लाभ जो इस पद्धति में बताया जाता है, वह यह है कि ग्रह जिस नक्षत्र में बैठा है, उस नक्षत्र का स्वामी अपने आधिपत्य द्वारा कई बातों द्वारा घटनाओं के होने की ओर इशारा करेगा, नक्षत्रांश द्वारा एक घटना निश्चित हो जाएगी जिसे घटना है। इस प्रकार घटना विशेष का निर्णय भी इस पद्धति की विशेषता बतलाई गई है,

उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी व्यक्ति का जन्म मिथुन लग्न है और उसकी मंगल की दशा है और मंगल का स्पष्ट 4-14-0 है। मंगल ग्रह सिंह राशि में शुक्र के नक्षत्र में शुक्र के ही नक्षत्रांश बुध के साथ है। अत: यह एकादश भाव के कारण (जिसपर इसका आधिपत्य है) वाहन संबंधी लाभ पहुंचाएगा।

यद्यपि मंगल भूमि, भवन भी दिला सकता था क्योंकि यह भूमि, मकान का कारक है, परन्तु यहां वह वाहन की प्राप्ति करवाएगा क्योंकि यह बुद्ध के साथ है और वाहन द्योतक ग्रह शुक्र के नक्षत्र में है।

हां इतना अवश्य है कि शुक्र को बलवान होना चाहिए। इस प्रकार कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार यदि कोई ग्रह ऐसे नक्षत्रांश में है जो कि शुभ है तो उसको सुख-सफलता की प्राप्ति होगी।

इसका तात्पर्य यह है कि फल की शुभता या अशुभता का निर्णय नक्षत्रांश करता है। यदि जिस नक्षत्र में कोई ग्रह स्थित है, उसका स्वामी कुंडली में अपने आधिपत्य द्वारा शुभ की सूचना देता है परन्तु नक्षत्रांश का स्वामी यदि शुभ नहीं है तो फिर आशा के सिवा कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। ग्रह जिस राशि में स्थित होता है, वह राशि उस ग्रह के बलाबल के निर्णय में सहायक होती है।

जैसे उच्च, मूल त्रिकोण, स्वक्षेत्र व मित्र क्षेत्र में बलवान होता है। यदि उस राशि का स्वामी भी बलवान हो जिसमें वह स्थित है तो और भी बलवान समझा जाएगा।

इस पद्धति में नक्षत्रांश की सहायता से हम दो जुड़वा बच्चों के जीवन की विभिन्नता का दर्शन कर सकते हैं। इस दिशा में उनके दशम भाव के स्पष्ट का अध्ययन करना चाहिए। यद्यपि दोनों बच्चों का दशमाधिपति एक ही ग्रह होगा।

दशम स्पष्ट के नक्षत्र का स्वामी भी एक ही ग्रह होगा परन्तु दोनों के नक्षत्रांशों के स्वामी भिन्न-भिन्न ग्रह होंगे, जिसके कारण दोनों बच्चों के कार्यों में भिन्नता आ जाएगी।

कृष्णमूर्ति पद्धति का तो यहां तक कहना है कि ग्रहों का फल इतना महत्व नहीं रखता है जितना कि उस नक्षत्र के स्वामी का है जिसमें कोई ग्रह स्थित है,

जो नक्षत्रांश का विशेष स्वामी हुआ। गोचर के विषय में भी कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार यदि कोई ग्रह किसी नक्षत्र से गुजर रहा है तो उस नक्षत्र का स्वामी ही इस बात का निर्णय करेगा कि फल कैसा हो।

ग्रह तो केवल यह दर्शाएगा कि वह फल को कहां से प्राप्त करेगा। इस प्रकार ग्रहों के फल कहने में मुख्यतया कृष्णमूर्ति पद्धति तीन वस्तुओं का प्रयोग करती है-

1- राशि जिसमें ग्रह स्थित है और उसका स्वामी।

2- नक्षत्र जिसमें कोई ग्रह बैठा है और उसका स्वामी।

3- नक्षत्रांश का स्वामी। उदाहरण के लिए यदि कोई मेष राशि के 15वें अंश में स्थित है तो इस स्थिति में राशि स्वामी मंगल होगा और नक्षत्रांश स्वामी शुक्र। अब इन गुण-दोषों को मिलाकर उक्त ग्रह स्थिति का फल कह सकेंगे।

मंगल और शुक्र दोनों युवा ग्रह हैं, दोनों कामातुर हैं। अत: ऐसा व्यक्ति काम-वासना से बहुत पीडि़त होगा। मंगल उद्योग से संबंध रखता है और शुक्र का संबंध गाने-बजाने तथा सुंदरता से संबंधित वस्तुओं से है। अत: यह ग्रह स्थिति संगीत के उपकरणों का निर्माण अथवा सुंदरता बढ़ाने वाली वस्तुओं के उत्पादन का धंधा जाहिर करेगी।

मंगल चूंकि एक आघात्मक ग्रह है और शुक्र का तथा मेष राशि का आंखों के ऊपर के भाग से संबंध है और शुक्र का शांति। इस कारण दोनों शारीरिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अत: यह ग्रह स्थिति जातक को शारीरिक व्यायाम में लगाएगी। मंगल अग्नि रूप है और शुक्र सुख-विलास से संबंधित है, अत: सिगरेट आदि पीना इस युति से व्यक्त होगा। कुल मिलाकर यही बात है कि कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्रांश का महत्व सर्वोपरि है, राशि व नक्षत्र स्वामी से भी बढ़कर।

नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय हमारे ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र के अनुसार रोगों का वर्णन किया गया है |

नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय  नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय हमारे ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र के अनुसार रोगों का वर्णन किया गया है |

व्यक्ति के कुंडली में नक्षत्र अनुसार रोगों का विवरण निम्नानुसार है |

आपके कुंडली में नक्षत्र के अनुसार परिणाम आप देख सकते है

अश्विनी नक्षत्र :

जातक को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट

. उपाय : दान पुण्य, दिन दुखियों की सेवा से लाभ होता है |

भरणी नक्षत्र :

जातक को शीत के कारण कम्पन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्य क्षमता का अभाव |

उपाय : गरीबोंकी सेवा करे लाभ होगा |

कृतिका नक्षत्र :

जातक आँखों सम्बंधित बीमारी, चक्कर आना, जलन, निद्रा भंग, गठिया घुटने का दर्द, ह्रदय रोग, घुस्सा आदि

| उपाय : मन्त्र जप, हवन से लाभ |

रोहिणी नक्षत्र :

ज्वर, सिर या बगल में दर्द, चित्य में अधीरता |

उपाय : चिर चिटे की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति मिलती है |

मृगशिरा नक्षत्र :
जातक को जुकाम, खांसी, नजला, से कष्ट |

उपाय : पूर्णिमा का व्रत करे लाभ होगा |

आद्रा नक्षत्र : जातक को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, अधासीरी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा |

उपाय : भगवान शिव की आराधना करे, सोमवार का व्रत करे, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधे लाभ होगा |

पुनर्वसु नक्षत्र :
जातक सिर या कमर में दर्द से कष्ट |

रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक का पौधा की जड़ अपनी भुजा मर बांधने से लाभ होगा |

पुष्प नक्षत्र :

जातक निरोगी व स्वस्थ होता है | कभी तीव्र ज्वर से दर्द परेशानी होती है |

कुशा की जड़ भुजा में बांधने से तथा पुष्प नक्षत्र में दान पुण्य करने से लाभ होता है |

अश्लेश नक्षत्र :

जातक का दुर्बल देह प्राय: रोग ग्रस्त बना रहता है | देह में सभी अंग में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदुषण के कारण कष्ट |

उपाय :

नागपंचमी का पूजन करे, पटोल की जड़ बांधने से लाभ होता है |

मघा नक्षत्र :
जातक को अर्धसीरी या अर्धांग पीड़ा, भुत पिचाश से बाधा |
उपाय : कुष्ठ रोगी की सेवा करे | गरीबोंको मिष्ठान खिलाये |

पूर्व फाल्गुनी :

जातक को बुखार,खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट |

उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजु में बांधे | नवरात्रों में देवी माँ की उपासना करे |

उत्तर फाल्गुनी : जातक को ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकडन

उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजु में बांधे | ब्राह्मण को भोजन कराये |

हस्त नक्षत्र :

जातको पेट दर्द, पेट में अफारा, पसीने से दुर्गन्ध, बदन में वात पीड़ा

आक या जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा |

चित्रा नक्षत्र :

जातक जटिल या विषम रोगों से कष्ट पता है | रोग का कारण बहुधा समज पाना कठिन होता है | फोड़े फुंसी सुजन या चोट से कष्ट होता है |

उपाय : असंगध की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होता है | तिल चावल जौ से हवन करे |

स्वाति नक्षत्र :

वाट पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकडन से कष्ट |

उपाय : गौ तथा ब्राह्मणों की सेवा करे, जावित्री की जड़ भुजा में बांधे |

विशाखा नक्षत्र : जातक को सर्वांग पीड़ा से दुःख | कभी फोड़े होने से पीड़ा |

उपाय : गूंजा की जड़ भुजा भुजा पर बांधना, सुगन्धित वास्तु से हवन करना लाभ दायक होता है |

अनुराधा नक्षत्र : जातक को ज्वर ताप, सिर दर्द, बदन दर्द, जलन, रोगों से कष्ट |

उपाय : चमेली, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधना से लाभ |

जेष्ठा नक्षत्र :

जातक को पित्त बड़ने से कष्ट | देह में कम्पन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी, कम में मन नहीं लगना |

उपाय : चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से लाभ | ब्राह्मण को दूध से बनी मिठाई खिलाये |

मूल नक्षत्र :

जातक को सन्निपात ज्वर, हाथ पैरों का ठंडा पड़ना, रक्तचाप मंद, पेट गले में दर्द अक्सर रोगग्रस्त रहना |

उपाय : 32 कुओं (नालों) के पानी से स्नान तथा दान पुण्य से लाभ होगा |

पूर्वाषाढ़ नक्षत्र :

जातक को देह में कम्पन, सिर दर्द तथा सर्वांग में पीड़ा | सफ़ेद चन्दन का लेप, आवास कक्ष में सुगन्धित पुष्प से सजाये |

कपास की जड़ भुजा में बांधने से लाभ |

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :

जातक संधि वात, गठिया, वात शूल या कटी पीड़ा से कष्ट, कभी असहय वेदना |

उपाय : कपास की जड़ भुजा में बांधे, ब्राह्मणों को भोज कराये लाभ होगा |

श्रवन नक्षत्र :

जातक अतिसार, दस्त, देह पीड़ा ज्वर से कष्ट, दाद, खाज खुजली जैसे चर्म रोग कुष्ठ, पित्त, मवाद बनना, संधि वात, क्षय रोग से पीड़ा |

उपाय : अपामार्ग की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है |

धनिष्ठा नक्षत्र :

जातक मूत्र रोग, खुनी दस्त, पैर में चोट, सुखी खांसी, बलगम, अंग भंग, सुजन, फोड़े या लंगड़े पण से कष्ट |

उपाय : भगवान मारुती की आराधना करे | गुड चने का दान करे |

शतभिषा नक्षत्र : जातक जलमय, सन्निपात, ज्वर, वातपीड़ा, बुखार से कष्ट | अनिंद्रा, छाती पर सुजन, ह्रदय की अनियमित धड़कन, पिंडली में दर्द से कष्ट |

उपाय : यज्ञ, हवन, दान, पुण्य तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलानेसे लाभ होगा |

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र :

जातक को उल्टी या वमन, देह पीड़ा, बैचेनी, ह्रदय रोग, टकने की सुजन, आंतो का रोग से कष्ट होता है |

उपाय : भृंगराज की जड़ भुजा में भुजा पर बांधे, तिल का दान करने से लाभ होता है |

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र :

जातक अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना से कष्ट हो सकता है |

उपाय : पीपल की जड़ भुजा पर बांधने से तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलाये लाभ होगा | रेवती नक्षत्र : जातक को ज्वर, वाट पीड़ा, मति भ्रम, उदार विकार, मादक द्रव्य सेवन से उत्पन्न रोग किडनी के रोग, बहरापन, या कण के रोग पाव की अस्थि, मासपेशी खिचाव से कष्ट | उपाय : पीपल की जड़ भुजा में बांधे लाभ होगा |

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नक्षत्र से जाने क्या आप इन नक्षत्रो में पैदा नही हुए अगर हुए है तो तुरंत उपाय करे

ज्योतिष के अनुसार अशुभ जन्म समय हम जैसा कर्म करते हैं उसी के अनुरूप हमें ईश्वर सुख दु:ख देता है। सुख दु:ख का निर्घारण ईश्वर कुण्डली में ग्रहों स्थिति के आधार पर करता है। जिस व्यक्ति का जन्म शुभ समय में होता है उसे जीवन में अच्छे फल मिलते हैं और जिनका अशुभ समय में उसे कटु फल मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शुभ समय क्या है और अशुभ समय किसे कहते हैं

अमावस्या में जन्म:

ज्योतिष शास्त्र में अमावस्या को दर्श के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि में जन्म माता पिता की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। जो व्यक्ति अमावस्या तिथि में जन्म लेते हैं उन्हें जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना होता है। इन्हें यश और मान सम्मान पाने के लिए काफी प्रयास करना होता है। अमावस्या तिथि में भी जिस व्यक्ति का जन्म पूर्ण चन्द्र रहित अमावस्या में होता है वह अधिक अशुभ माना जाता है।

इस अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए घी का छाया पात्र दान करना चाहिए, रूद्राभिषेक और सूर्य एवं चन्द्र की शांति कराने से भी इस तिथि में जन्म के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।

संक्रान्ति में जन्म:

संक्रान्ति के समय भी संतान का जन्म अशुभ माना जाता है। इस समय जिस बालक का जन्म होता है उनके लिए शुभ स्थिति नहीं रहती है। संक्रान्ति के भी कई प्रकार होते हैं जैसे रविवार के संक्रान्ति को होरा कहते हैं,

सोमवार को ध्वांक्षी, मंगलवार को महोदरी, बुधवार को मन्दा, गुरूवार को मन्दाकिनी, शुक्रवार को मिश्रा व शनिवार की संक्रान्ति राक्षसी कहलाती है।

अलग अलग संक्रान्ति में जन्म का प्रभाव भी अलग होता है। जिस व्यक्ति का जन्म संक्रान्ति तिथि को हुआ है उन्हें ब्राह्मणों को गाय और स्वर्ण का दान देना चाहिए इससे अशुभ प्रभाव में कमी आती है। रूद्राभिषेक एवं छाया पात्र दान से भी संक्रान्ति काल में जन्म का अशुभ प्रभाव कम होता है।

भद्रा काल में जन्म

जिस व्यक्ति का जन्म भद्रा में होता है उनके जीवन में परेशानी और कठिनाईयां एक के बाद एक आती रहती है। जीवन में खुशहाली और परेशानी से बचने के लिए इस तिथि के जातक को सूर्य सूक्त, पुरूष सूक्त, रूद्राभिषेक करना चाहिए। पीपल वृक्ष की पूजा एवं शान्ति पाठ करने से भी इनकी स्थिति में सुधार होता है।

कृष्ण चतुर्दशी में जन्म
पराशर महोदय कृष्ण चतुर्दशी तिथि को छ: भागों में बांट कर उस काल में जन्म लेने वाले व्यक्ति के विषय में अलग अलग फल बताते हैं। इसके अनुसार प्रथम भाग में जन्म शुभ होता है परंतु दूसरे भाग में जन्म लेने पर पिता के लिए अशुभ होता है,

तृतीय भाग में जन्म होने पर मां को अशुभता का परिणाम भुगतना होता है,

चौथे भाग में जन्म होने पर मामा पर संकट आता है,
पांचवें भाग में जन्म लेने पर वंश के लिए अशुभ होता है
एवं छठे भाग में जन्म लेने पर धन एवं स्वयं के लिए अहितकारी होता है।
कृष्ण चतुर्दशी में संतान जन्म होने पर अशु प्रभाव को कम करने के लिए माता पिता और जातक का अभिषेक करना चाहिए साथ ही ब्राह्मण भोजन एवं छाया पात्र दान देना चाहिए।

समान जन्म नक्षत्र
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार अगर परिवार में पिता और पुत्र का, माता और पुत्री का अथवा दो भाई और दो बहनों का जन्म नक्षत्र एक होता है तब दोनो में जिनकी कुण्डली में ग्रहों की स्थिति कमज़ोर रहती है उन्हें जीवन में अत्यंत कष्ट का सामना करना होता है।

इस स्थिति में नवग्रह पूजन, नक्षत्र देवता की पूजा, ब्राह्मणों को भोजन एवं दान देने से अशुभ प्रभाव में कमी आती है।

सूर्य और चन्द्र ग्रहण में जन्म

सूर्य और चन्द्र ग्रहण को शास्त्रों में अशुभ समय कहा गया है। इस समय जिस व्यक्ति का जन्म होता है उन्हें शारीरिक और मानसिक कष्ट का सामना करना होता है। इन्हें अर्थिक परेशानियों का सामना करना होता है। सूर्य ग्रहण में जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु की संभवना भी रहती है।

इस दोष के निवारण के लिए नक्षत्र स्वामी की पूजा करनी चाहिए।

सूर्य व चन्द्र ग्रहण में जन्म दोष की शांति के लिए सूर्य, चन्द्र और राहु की पूजा भी कल्यणकारी होती है।

सर्पशीर्ष में जन्म
अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय व चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है।

सार्पशीर्ष को अशुभ समय माना जाता है। इसमें कोई भी शुभ काम नहीं होता है। सार्पशीर्ष मे शिशु का जन्म दोष पूर्ण माना जाता है।

जो शिशु इसमें जन्म लेता है उन्हें इस योग का अशुभ प्रभाव भोगना होता है। इस योग में शिशु का जन्म होने पर रूद्राभिषेक कराना चाहिए और ब्रह्मणों को भोजन एवं दान देना चाहिए इससे दोष के प्रभाव में कमी आती है।

गण्डान्त योग में जन्म

गण्डान्त योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस समय संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। पराशर महोदय के अनुसार तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है।

संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।

त्रिखल दोष में जन्म

जब तीन पुत्री के बाद पुत्र का जन्म होता है अथवा तीन पुत्र के बाद पुत्री का जन्म होता है तब त्रिखल दोष लगता है। इस दोष में माता पक्ष और पिता पक्ष दोनों को अशुभता का परिणाम भुगतना पड़ता है। इस दोष के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए माता पिता को दोष शांति का उपाय करना चाहिए।

मूल में जन्म दोष

में जन्म अत्यंत अशुभ माना जाता है। मूल के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है,
दूसरे चरण में माता को,
तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है।
इस नक्षत्र में जन्म लेने पर 1 वर्ष के अंदर पिता की, 2 वर्ष के अंदर माता की मृत्यु हो सकती है। 3 वर्ष के अंदर धन की हानि होती है। इस नक्षत्र में जन्म लेने पर 1वर्ष के अंदर जातक की भी मृत्यु की संभावना रहती है। इस अशुभ स्थित का उपाय यह है कि मास या वर्ष के भीतर जब भी मूल नक्षत्र (Mool nakshatra) पड़े मूल शान्ति करा देनी चाहिए।

अपवाद स्वरूप मूल का चौथ चरण जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वयं के लिए शुभ होता है।

अन्य दोष ज्योतिषशास्त्र में इन दोषों के अलावा कई अन्य योग और हैं जिनमें जन्म होने पर अशुभ माना जाता है इनमें से कुछ हैं यमघण्ट योग, वैधृति या व्यतिपात योग एव दग्धादि योग हें। इन योगों में अगर जन्म होता है तो इसकी शांति अवश्य करानी चाहिए।

पंडित
bhubneshwar
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
9893946810