Wednesday, 28 September 2016

शंख कितने प्रकार के होते है और शंख के क्या फायदे है

शंख को 
समुद्रज,
 कंबु,
 सुनाद,
 पावनध्वनि, 
कंबु
, कंबोज, 
अब्ज,
 त्रिरेख, 
जलज,
 अर्णोभव,
 महानाद,
 मुखर, 
दीर्घनाद, 
बहुनाद, 
हरिप्रिय, 
सुरचर, 
जलोद्भव,
 विष्णुप्रिय, 
धवल,
 स्त्रीविभूषण, 
पाञ्चजन्य, 
अर्णवभव 

आदि नामों से भी जाना जाता है। स्वस्थ काया के साथ माया देते हैं शंख। शंख दैवीय के साथ-साथ मायावी भी होते हैं। शंखों का हिन्दू धर्म में पवित्र स्थान है। घर या मंदिर में शंख कितने और कौन से रखें जाएं इसके बारे में शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके घर में युद्ध से संबंधित शंख रखा हो जबकि आपको जरूरत है शांति और समृद्धि की। शिवलिंग और शालिग्राम की तरह शंख भी कई प्रकार के होते हैं सभी तरह के शंखों का महत्व और कार्य अलग-अलग होता है। समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई। जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ। शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। प्रत्येक शंख का गुण अलग अलग माना गया है। कोई शंख विजय दिलाता है, तो कोई धन और समृद्धि। किसी शंख में सुख और शांति देने की शक्ति है तो किसी में यश और कीर्ति। 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। 
इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। 
शंख की प्रसिद्ध : आपके हाथों की अंगुलियों के प्रथम पोर पर भी शंखाकृति बनी होती है और अंगुलियों के नीचे भी। शंख के नाम से कई बातें विख्यात है जैसे योग में शंख प्रक्षालन और शंख मुद्रा होती है, तो आयुर्वेद में शंख पुष्पी और शंख भस्म का प्रयोग किया जाता है। प्राचीनकाल में शंख नाम से एक लिपि भी हुआ करती थी। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर में सुशोभित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है तथा वजन दो किलोग्राम है। इस बार हम आपको बताएंगे ऐसे चमत्कारिक और दैवीय शंखों के बारे में जिन्हें जानकार आप है हैरान रह जाएंगे… नोटे : ध्यान रहे कि आप यदि अपने घर में इनमें से किसी भी प्रकार का शंख रखना चाहते हैं ‍तो किसी जानकार से पूछकर ही रखे। कितने शंख रखना है और कौन कौन से यह वही बता सकता है। 

द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत: दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत् 

 हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं।
 
इनके 3 प्रमुख प्रकार हैं- 

वामावर्ती, 
दक्षिणावर्ती 
तथा गणेश शंख 
या मध्यवर्ती शंख।

 इन तीनों ही प्रकार के शंखों में कई तो चमत्कारिक हैं, तो कई दुर्लभ और बहुत से सुलभ हैं। सभी तरह के शंखों के अलग-अलग नाम हैं। 
अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि। 

भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था।

 दक्षिणावर्ती शंख : 

इस शंख को दक्षिणावर्ती इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जहां सभी शंखों का पेट बाईं ओर खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दाईं और खुलता है। इस शंख को देवस्वरूप माना गया है। 

दक्षिणावर्ती शंख 

के पूजन से खुशहाली आती है और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ संपत्ति भी बढ़ती है। इस शंख की उपस्थिति ही कई रोगों का नाश कर देती है। दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है।
 
* दक्षिणावर्ती शंख के प्रकार :

 दक्षिणावर्ती शंख 2 प्रकार के होते हैं नर और मादा। 

जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता है। 

वामवर्ती शंख : 

वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है। इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं। यह शंख आसानी से मिल जाता है, क्योंकि यह बहुतायत में पैदा होता है। यह शंख घर से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालने में सक्षम है। इसके घर में रखे होने से ही आसपास का वातावरण शुद्ध होता रहता है। गणेश शंख : समुद्र मंथन के दौरान 8वें रत्न के रूप में 

सर्वप्रथम गणेश शंख की ही उत्पत्ति हुई थी।

 इसे गणेश शंख इसलिए कहते हैं कि इसकी आकृति हू-ब-हू गणेशजी जैसी है। शंख में निहित सूंड का रंग अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्ययुक्त है। प्रकृति के रहस्य की अनोखी झलक गणेश शंख के दर्शन से मिलती है। यह शंख दरिद्रतानाशक और धन प्राप्ति का कारक है। श्रीगणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है। इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। गणेश शंख आसानी से नहीं मिलने के कारण दुर्लभ होता है। आर्थिक, व्यापारिक, कर्ज और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है। 

कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख :

 महाभारत में लगभग सभी योद्धाओं के पास शंख होते थे। उनमें से कुछ योद्धाओं के पास तो चमत्कारिक शंख होते थे, जैसे भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। 

 पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:। 
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।। 

-महाभारत भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था। कहते हैं कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। इस शंख के हरियाणा के करनाल में होने के बारे में कहा जाता रहा है। माना जाता है कि यह करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम में रखा था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ी कई बेशकीमती वस्तुएं थीं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है। महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है। इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है। हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है। 

देवदत्त शंख : 

यह शंख महाभारत में अर्जुन के पास था। वरुणदेव ने उन्हें यह गिफ्ट में दिया था। इसका उपयोग दुर्भाग्यनाशक माना गया है। माना जाता है कि इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोग इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस शंख को शक्ति का प्रतीक भी माना गया है। 

 महालक्ष्मी शंख : 

इस शंख को प्राकृतिक रूप से निर्मित श्रीयंत्र भी कहा जाता है इसीलिए इसका नाम महालक्ष्मी शंख है। माना जाता है कि यह महालक्ष्मी का प्रतीक है। इसकी आवाज सुरीली होती है। माना जाता है कि इस शंख की जिस भी घर में पूजा-अर्चना होती है, वहां देवी लक्ष्मी का स्वयं वास होता है। किसी भी शंख की पूजा इस मंत्र से करना चाहिए- 

त्वंपुरा सागरोत्पन्न विष्णुनाविघृतःकरे देवैश्चपूजितः सर्वथौपाच्चजन्यमनोस्तुते। 

पौण्ड्र शंख : 

पोंड्रिक या पौण्ड्र शंख महाभारत में ‍भीष्म के पास था। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो उन्हें यह पौण्‍ड्र शंख रखना चाहिए। इसके घर में रखे होने से मनोबल बढ़ता है। अधिकतर इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम माना गया है। इसे विद्यार्थियों के अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।

 कामधेनु शंख :

 ये शंख भी प्रमुख रूप से दो प्रकार के हैं। 
एक गोमुखी शंख 
और दूसरा कामधेनु शंख। 

यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि कामधेनु शंख की पूजा-अर्चना करने से तर्कशक्ति प्रबल होती है और सभी तरह की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला भी कहा गया है। कलियुग में मानव की मनोकामना पूर्ति का एकमात्र साधन है। यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है। कामधेनु शंख हर तरह की मनोकामना पूर्ण करने में सक्षम है। महर्षि पुलस्त्य ने लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस शंख का उपयोग किया था। पौराणिक शास्त्रों में इसके प्रयोग द्वारा धन और समृद्धि स्थायी रूप से बढ़ाई जा सकती है। 

 कौरी शंख 

कौरी शंख अत्यंत ही दुर्लभ शंख है। माना जाता है कि यह जिसके भी घर में होता है उसका भाग्य खुला जाता है और समृद्धि बढ़ती जाती है। प्राचीनकाल से ही इस शंख का उपयोग गहने, मुद्रा और पांसे बनाने में किया जाता रहा है। कौरी को कई जगह कौड़ी भी कहा जाता है। पीली कौड़िया घर में रखने से धन में वृद्धि होती है।

 हीरा शंख : 

इसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल तांत्रिक लोग विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए करते हैं। यह दक्षिणावर्ती शंख की तरह खुलता है। यह पहाड़ों में पाया जाता है। इसकी खोल पर ऐसा पदार्थ लगा होता है, जो स्पार्कलिंग क्रिस्टल के समान होता है इसीलिए इसे हीरा शंख भी कहते हैं। यह बहुत ही बहूमुल्य माना गया है। 

 मोती शंख : 

यदि आपको घर में सुख और शांति चाहिए तो मोती शंख स्थापित करें। सुख और शांति होगी तभी समृद्धि बढ़ेगी। मोती शंख हृदय रोगनाशक भी माना गया है। मोती शंख को सफेद कपड़े पर विराजमान करके पूजाघर में इसकी स्थापना करें और प्रतिदिन पूजन करें। *यदि मोती शंख को कारखाने में स्था‍पित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है। यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाए तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है। *यदि मोती शंख को मंत्र सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठा पूजा कर स्थापित किया जाए तो उसमें जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है। *मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज ‘ॐ श्री महालक्ष्मै नम:’ 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है। 

अनंतविजय शंख :

 युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजय था। अनंत विजय अर्थात अंतहीन जीत। इस शंख के होने से हर कार्य में विजय मिलती जाती है। प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त के लिए अनंतविजय नामक शंख मिलना दुर्लभ है। 

 मणि पुष्पक और सुघोषमणि शंख : 

नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणि पुष्पक शंख था। मणि पुष्पक शंख की पूजा-अर्चना से यश कीर्ति, मान-सम्मान प्राप्त होता है। उच्च पद की प्राप्ति के लिए भी इसका पूजन उत्तम है। 

 वीणा शंख : 

विद्या की देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है। यह शंख वीणा समान आकृति का होता है इसीलिए इसे वीणा शंख कहा जाता है। माना जाता है कि इसके जल को पीने से मंदबुद्धि व्‍यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है। अगर वाणी में कोई दोष है या बोल नहीं पाते हैं तो इस शंख का जल पीने के साथ-साथ इसे बजाएं भी। 

 अन्नपूर्णा शंख : 

अन्नपूर्णा का अर्थ होता है अन्न की पूर्ति करने वाला या वाली। इस शंख को रखने से हमेशा बरकत बनी रहती है। यह धन और समृद्धि बढ़ाता है। गृहस्थ जीवन-यापन करने वालों को प्रतिदिन इसके दर्शन करने चाहिए। 

ऐरावत शंख : 

इंद्र के हाथी का नाम ऐरावत है। यह शंख उसी के समान दिखाई देता है इसीलिए इसका नाम ऐरावत है। यह शंख मूलत: सिद्ध और साधना प्राप्ति के लिए माना गया है। माना जाता है कि रंग और रूप को निखारने के लिए भी इस शंख का उपयोग किया जाता है। इस शंख में 24 से 28 घंटे जल भर करके रखें और फिर उसको ग्रहण करेंगे तो चेहरा कांतिमय बन जाएगा। ऐसा प्रतिदिन कुछ दिनों तक करना चाहिए। 

 विष्णु शंख :

 इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में शिथिलता के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है। प्रतिदिन इस शंख के जल का सेवन करने से कई तरह के असाध्य रोग भी मिट जाते हैं। 

 गरूड़ शंख : 

गरूड़ की मुखाकृति समान होने के कारण इसे गरूड़ शंख कहा गया है। यह शंख भी अत्यंत दुर्लभ है। यह शंख भी सुख और समृद्धि देने वाला है। माना जाता है कि इस शंख के घर में होने से किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं आती है। 

 शंख के अन्य प्रकार : 

देव शंख, 
चक्र शंख, 
राक्षस शंख, 
शनि शंख, 
राहु शंख,
 पंचमुखी शंख, 
वालमपुरी शंख,
 बुद्ध शंख, 
केतु शंख, 
शेषनाग शंख, 
कच्छप शंख, 
शेर शंख, 
कुबार गदा शंख, 
सुदर्शन शंक आदि। 

 उपरोक्त सभी तरह के शंख किसी न किसी विशेष कार्य और लाभ के लिए घर में रखे जाते हैं। इनमें से अधिकतर तो दुर्लभ है जिनके यहां मात्र नाम दिए जा रहे हैं। भगवान शंकर रुद्र शंख को बजाते थे जबकि उन्होंने त्रिपुरासुर के संहार के समय त्रिपुर शंख बजाया था। 

 नादब्रह्म : 

शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख की ध्वनि को ‘ॐ’ की ध्वनि के समकक्ष माना गया है। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है। सेहत में फायदेमंद शंख : शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फॉस्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते। शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंखवादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है। गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वर्द्धक और समृद्धिदायक कहा गया है। पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है। 
श्रेष्ठ शंख के लक्षण- शंखस्तुविमल: श्रेष्ठश्चन्द्रकांतिसमप्रभ: अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद: 

अर्थात निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समान वाला शंख श्रेष्ठ होता है जबकि अशुद्ध अर्थात मग्न शंख गुणदायक नहीं होता। गुणों वाला शंख ही प्रयोग में लाना चाहिए। क्षीरसागर में शयन करने वाले सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के एक हाथ में शंख अत्यधिक पावन माना जाता है। इसका प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष रूप से किया जाता है। शंख से वास्तुदोष का निदान : शंख से वास्तुदोष भी मिटाया जा सकता है। शंख को किसी भी दिन लाकर पूजा स्थान पर पवित्र करके रख लें और प्रतिदिन शुभ मुहूर्त में इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर में वास्तुदोष का प्रभाव कम हो जाता है। शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

तुलसी करेगी आपके रोगों को ठीक

भगवान कृष्ण को अति प्रिय मानी जाने वाली तुलसी लगभग सभी हिन्दुओं के आंगनों में देखी जा सकती है। तुलसी मुख्यतया दो प्रकार की होती है, श्यामा एवं रामा। श्यामा तुलसी के पत्ते हल्का काला रंग लिये हुये होते हैं, जबकि रामा तुलसी के पत्ते हरे एवं भूरे रंग के होते हैं। तुलसी के बारे में एक कथा प्रचलित है कि एक बार जब युधिष्ठर राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभी राजा जीते जा चुके थे पर जरासंध को जीतना मुश्किल हो रहा था क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता थी उसके पतिव्रत धर्म के कारण वह मारे नहीं मरता था। वृंदा का पतिवृत धर्म नष्ट करने के लिये कृष्ण ने कपट से जरासंध का रूप धारण कर लिया और वृंदा का पतिवृत धर्म नष्ट कर दिया। जब वृंदा को अपने साथ हुये इस धोखे का पता चला तो उसने कृष्ण को श्राप दिया कि तुम पत्थर हो जाओ जिससे कृष्ण सालिगराम बन गये। उसी समय वहां लक्ष्मी जी आ गईं उन्होंने गुस्से में वृंदा को श्राप दिया कि तुम जड़ हो जाओ जिससे वृंदा तुलसी रूपी पौधा बन गई। झगड़ा बढ़ता देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी गलती स्वीकार करते हुये बीच-बिचाव कराया और वृंदा को वरदान दिया कि आज से मैं किसी भी पूजन में कोई भी भोग बिना तुलसी के स्वीकार नहीं करूंगा। तभी से भगवान के पूजन में तुलसी दल का प्रयोग अनिवार्य हो गया। यह तो हुई पौराणिक बात। इस संबंध में विज्ञानियों का कहना है कि तुलसी को धर्म को जोड़ने का उद्देश्य इस छोटे से पौधे को लुप्त होने से बचाना था, भारत के प्राचीन ऋषि मुनि काफी विद्वान थे उन्हें मालूम था कि तुलसी असंख्य गुणों वाला पौधा है अतः इसे धर्म से जोड़ दिया तो यह अन्य वनस्पतियों की तरह विलुप्त नहीं होगा। सच भी है यदि इस पौधे को धर्म से न जोड़ा गया होता तो शायद तमाम अन्य वनस्पतियों की तरह यह भी लुप्त हो गया होता अथवा लुप्त होने की कगार पर होता। तुलसी की जड़, पत्ती, तना, बीज (मंजरी) आदि हर भाग किसी न किसी रोग की औषधि है, आइये एक नजर डालते हैं तुलसी के औषधीय गुणों पर:-

1.】 प्रातः खाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन किया जाये तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ व्यक्तित्व भी प्रभावशाली बनता है।

2. 】शरीर के बजन को नियंत्रित करने हेतु भी तुलसी गुणकारी है, इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का बजन घटता है एवं दुबले का बढ़ता है।

3. 】यदि तुलसी की पत्तियों को काली मिर्च के साथ सेवन किया जाये तो मलेरिया एवं मियादी बुखार में आराम मिलता है।

4. 】चाय बनाते समय कुछ पत्ती तुलसी की डाल दी जाये ंतो सर्दी बुखार एवं मांस पेशियों के दर्द में राहत मिलती है।

5.】 तुलसी के रस में खड़ी शक्कर मिला कर पीने से सीने के दर्द एवं खांसी में राहत मिलती है।

6. 】दूषित पानी में तुलसी की कुछ पत्तियां डालने से पानी शुद्ध हो जाता है।

7. 】पेट में दर्द होने पर तुलसी रस और अदरक रस को समान मात्रा में लेकर दिन भर में तीन चार बार पीने से दर्द का नाश होता है।

8. 】10 ग्राम तुलसी के साथ 5 ग्राम शहद एवं 5 ग्राम पिसी काली मिर्च का सेवन किया जाये तो पाचन शक्ति बढ़ती है।

9. 】चर-पांच भुने हुये लौंग के साथ तुलसी की पत्ती चूसने से सभी प्रकार की खांसी से राहत मिलती है।

10. 】तुलसी की पत्तियां चबाने से मुंह से आने वाली दुर्गंध समाप्त होती है।

11.】 तुलसी के ताजे पत्तों को गर्मकर नमक के साथ खाने से बंद गला खुल जाता है।

12.】 तुलसी की पत्तियां प्रत्येक सुबह पानी के साथ पीसकर लगाने से एक्जिमा एवं खुजली से राहत मिलती है।

13. 】तुलसी रस की गरम बंूदें कान में डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है।

14.】 मुंहासों पर तुलसी का लेप करने से मुंहासे समाप्त होते हैं।

15.】 तुलसी के ताजे रस का सेवन उल्टी को रोकने में काफी कारगर है। इस प्रकार इस नन्हे से पौधे का प्रत्येक भाग अत्यंत गुणकारी है।

तुलसी करे पुराने से पुराना रोग ठीक

धार्मिक महत्व के अलावा तुलसी को एक औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. इसका इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है. सर्दी-खांसी से लेकर कई बड़ी बीमारियों में भी एक कारगर औषधि है तुलसी. आयुर्वेद में तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय गुणों का एक विशेष स्थान है. तुलसी को संजीवनी बूटी के समान भी माना जाता है. आयुर्वेदिक चिकित्सा में तुलसी के पौधे के हर भाग को स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद बताया गया है. तुलसी की जड़, उसकी शाखाएं, पत्ती और बीज सभी का अपना-अपना अलग महत्व है. आमतौर पर घरों में दो तरह की तुलसी देखने को मिलती है, एक जिसकी पत्त‍ियों का रंग थोड़ा गहरा होता है और दूसरा, जिसकी पत्तियों का रंग हल्का होता है. तुलसी शरीर का शोधन करने के साथ-साथ वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलित करने में भी मदद करती है. आइये आज आपको बताते हैं तुलसी के कुछ घरेलू नुस्खों से होने वाले फायदे के बारे में, जिन्हें अपनाकर आपको कई पुराने रोगों से निजात मिल सकती है.

1. 】टीबी के रोग को दूर भगाने में बेहद कारगर है तुलसी तुलसी, दमा और टीबी रोग में बहुत लाभकारी है. रोज़ाना तुलसी खाने से दमा और टीबी नहीं होता. तुलसी के औषधीय गुण के कारण यह बीमारी के लिए ज़िम्मेदार जीवाणु को बढ़ने से रोकती है. शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है.

2. 】मलेरिया को रखे दूर तुलसी की 11 पत्तियों का 4 खड़ी काली मिर्च के साथ सेवन करने से, मलेरिया और टाइफाइड को ठीक किया जा सकता है. मच्छरों के काटने से होने वाली ज़्यादातर बीमारियों का इलाज तुलसी के सेवन के द्वारा किया जा सकता है.

3. 】बुखार में 'पैरासिटामॉल’ की जगह खायें तुलसी सभी प्रकार के बुखार को जड़ से खत्म करने के लिए तुलसी कारगर साबित होती है. 20 तुलसी दल और 10 काली मिर्च मिलाकर बनाए गए काढ़े को पीने से पुराने से पुराना बुखार छू-मंतर हो जाता है. तुलसी की मदद से किसी भी तरह के बुखार को बगैर पैरासिटामॉल और एंटीबायोटिक के उपयोग के भी ठीक किया जा सकता है.

4. 】कुष्ठ रोग में लाभकारी होती है तुलसी की जड़ तुलसी की जड़ को पीसकर, सोंठ मिलाकर जल के साथ रोज़ सुबह-सुबह पीने से कुष्ठ रोग में लाभ मिलता है. कुष्ठ रोग में तुलसी के पत्तों का रस निकालकर पीने से लाभ फायदा मिलता है. आयुर्वेदाचार्यों के मुताबिक़, तुलसी के बगीचे के आस-पास रहने वाले लोगों को ‘कुष्ठ’ रोग होने की संभावना न के बराबर होती है.

5. 】माइग्रेन और साइनस में मिलती है राहत तुलसी का काढ़ा पीने से माइग्रेन और साइनस में आराम मिलता है. अगर आप पुराने सिर दर्द से परेशान हैं, तो रोज़ सुबह और शाम को एक चौथाई चम्मच तुलसी के पत्तों का रस, एक चम्मच शुद्ध शहद के साथ लेने से 15 दिनों में आपका दर्द पूरी तरह से ठीक हो सकता है.

6. 】आंखों के रोगों के लिए रामबाण औषधि है तुलसी श्यामा तुलसी के पत्तों का दो-दो बूंद रस 14 दिनों तक आंखों में डालने से रतौंधी ठीक हो जाती है. आंखों का पीलापन ठीक होता है. आंखों की लाली दूर करता है. तुलसी के पत्तों का रस काजल की तरह आंख में लगाने से आंख की रौशनी बढ़ती है.

7.】 सभी वात रोगों को दूर करने में है सहायक गठिया के दर्द में तुलसी की जड़, पत्ती, डंठल, फल और बीज को मिलाकर उसका चूर्ण बनाएं. इसमें पुराना गुड़ मिलाकर 12-12 ग्राम की गोलियां बना लें. सुबह-शाम गाय या बकरी के दूध के साथ सेवन करने से गठिया व जोड़ों के दर्द में लाभ होता है.

8.】 किडनी के रोगों में भी है लाभकारी किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाए गए जूस को शहद के साथ 6 महीनों तक रोज़ाना पीने से पथरी खत्म होकर बाहर निकल जाती है.

9. 】सांप के काटने पर लगाएं तुलसी का लेप अगर किसी को सांप ने काट लिया है, तो पीड़ित व्यक्ति को तुरंत तुलसी खिलानी चाहिए. ऐसा करने से उसकी जान बच सकती है. जिस स्थान पर सांप ने काटा हो, उस पर तुलसी की जड़ को मक्खन या घी में घिसकर लेप कर देना चाहिए. जैसे-जैसे ज़हर खिंचता चला जाता है, इस लेप का रंग सफ़ेद से काला हो जाता है. तुलसी के हर हिस्से को सांप के ज़हर में उपयोगी माना गया है.

10.】 दिल को मजबूत बनाती है तुलसी तुलसी के दस पत्ते, पांच काली मिर्च और चार बादाम को पीसकर आधा गिलास पानी में एक चम्मच शहद के साथ लेने से सभी प्रकार के हृदय रोग ठीक हो जाते हैं. तुलसी की 4-5 पत्तियां, नीम की दो पत्ती के रस को 2-4 चम्मच पानी में पीसकर 5-7 दिन रोज़ सुबह ख़ाली पेट खाने से हाई ब्लड प्रेशर ठीक हो जाता है.

11】. यौन रोगों के इलाज में कारगर है पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. इसके अलावा यौन-दुर्बलता और नपुंसकता में भी इसके बीज का नियमित इस्तेमाल फायदेमंद रहता है.

12】. अनियमित पीरियड्स की समस्या को करे दूर अकसर महिलाओं को पीरियड्स में अनियमितता की शिकायत हो जाती है. ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है. पीरियड्स की अनियमितता को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का नियमित रूप से सेवन किया जा सकता है.

तुलसी का पौधा बतायेगा की आप पर परेशानी आने वाली है

बहुत ही कम लोग यह बात जानते हैं कि पौधों के भीतर भी ऐसी ही अलग विशेषता है, जिसे अगर समझ लिया जाए तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाला जा सकता है। शायद कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि चाहे तुलसी के पौधे पर कितना ही पानी क्यों ना डाला जाए, उसकी कितनी ही देखभाल क्यों ना की जाए, वह अचानक मुरझाने या सूखने क्यों लगता है?क्या बताना चाहता हैआपको यकीन नहीं होगा लेकिन तुलसी का मुरझाया हुआ पौधा आपको यह बताने की कोशिश कर रहा होता है कि जल्द ही परिवार पर किसी विपत्ति का साया मंडरा सकता है। कहने का अर्थ यह है कि अगर परिवार के किसी भी सदस्य पर कोई मुश्किल आने वाली है तो उसकी सबसे पहली नजर घर में मौजूद तुलसी के पौधे पर पड़ती है।

हिन्दू शास्त्रशास्त्रों में यह बात भली प्रकार से उल्लिखित है कि अगर घर पर कोई संकट आने वाला है तो सबसे पहले उस घर से लक्ष्मी यानि तुलसी चली जाती है और वहां दरिद्रता का वास होने लगता है।बुध ग्रहजहां दरिद्रता, अशांति और कलह का वातावरण होता है वहां कभी भी लक्ष्मी का वास नहीं होता। ज्योतिष के अनुसार ऐसा बुध ग्रह की वजह से होता है क्योंकि बुध का रंग हरा होता है और वह पेड़-पौधों का भी कारक माना जाता है। अच्छा और बुरा प्रभावअच्छे प्रभाव में पेड़-पौधे फलने-फूलने लगते हैं और बुरे प्रभाव में मुरझाकर अपनी दुर्दशा बयां कर देते हैं।
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विभिन्न प्रकार की तुलसीशास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधों का जिक्र मिलता है,
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१】 जिनमें श्रीकृष्ण तुलसी
२】लक्ष्मी तुलसी,
३】 राम तुलसी,
४】 भू तुलसी,
५】नील तुलसी,
६】श्वेत तुलसी,
७】 रक्त तुलसी,
८】वन तुलसी,
९】ज्ञान तुलसी

मुख्य रूप से उल्लिखित हैं। इन सभी के गुण अलग-अलग और विशिष्ट हैं। तुलसी मानव शरीर में कान, वायु, कफ, ज्वर, खांसी और दिल की बीमारियों के लिए खासी उपयोगी है।

वास्तुशास्त्र में तुलसीअगर तुलसी के गमले को रसोई के पास रखा जाए तो किसी भी प्रकार की कलह से मुक्ति पाई जा सकती है।

जिद्दी पुत्र का हठ दूर करने के लिए पूर्व दिशा में लगी खिड़की के सामने रखें।

संतान में सुधार नियंत्रण या मर्यादा से बाहर निकल चुकी संतान को पूर्व दिशा से रखी गई तुलसी के तीन पत्तों को किसी ना किसी रूप में खिलाने पर वह आपकी आज्ञा का पालन करने लगती है।

कारोबार में वृद्धिकारोबार की चिंता सताने लगी है, घर में आय के साधन कम होते जा रहे हैं तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखी तुलसी पर हर शुक्रवार कच्चा दूध और मिठाई का भोग लगाने के बाद उसे किसी सुहागिन स्त्री को दे दें। इससे व्यवसाय में सफलता मिलती है।

नौकरी पेशाकारोबार की चिंता सताने लगी है, घर में आय के साधन कम होते जा रहे हैं तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखी तुलसी पर हर शुक्रवार कच्चा दूध और मिठाई का भोग लगाने के बाद उसे किसी सुहागिन स्त्री को दे दें। इससे व्यवसाय में सफलता मिलती है।

शारीरिक फायदेज्योतिष के अलावा शारीरिक तौर पर भी तुलसी के बड़े फायदे देखे गए हैं।

सुबह के समय खाली पेट ग्रहण करने से डायबिटीज, रक्त की परेशानी, वात, पित्त आदि जैसे रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।

प्रतिदिन अगर तुलसी के सामने कुछ समय के लिए बैठा जाए तो अस्थमा आदि जैसे श्वास के रोगों से जल्दी छुटकारा मिलता है।

वैद्य का दर्जाप्रत्येक चरण में तुलसी की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही आधुनिक रसायन शास्त्र भी यह बात स्वीकारता है कि तुलसी का सेवन, इसका स्पर्श, दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।

समस्त मनोकामनाओ को पूरा करने वाली भगवती दुर्गा क्षमा प्रार्थना

  <<<<<<<<<<<<=1=<<<<<<<<<<<<<<<

नही मन्त्र तंत्र जानु जप योग पाठ पूजा ।
  आहबान ध्यान का भी नही ख्याल और दूजा ।।
उपचार और मुद्रा पूजा विधान मेरा ।
         बस जानता यही हूँ अनुसरण माता तेरा ।।

>>>>>>>>>>>>>>=2=>>>>>>>>>>>>>>

श्री चरण पूजने में धन शाडयता बनी हो ।
        अल्पज्ञता से सेवा विधि हीन जो बनी हो ।।
जगधारिणी शिवे माँ सब माफ करना गलती।
सुत जो कपूत होवे माता नही बदलती ।।
>>>>>>>>>>>>>=३=>>>>>>>>>>>>>>>

जग में सुयोग्य सुन्दर सत्पुत्र  माता तेरे ।
                  मुझसा कपूत पॉवर उनमे एक तेरे।।
समुचित ना त्याग मेरा सब माफ करना गलती।
सुत जो कपूत होवे माता नही बदलती।।

>>>>>>>>>>>>>=४=>>>>>>>>>>>>>>>

जगदम्ब पाँव पूजा मेने करी न तेरी ।
     धन हिन् अर्चना में त्रुटिया भई घनेरी ।।
फिर भी असीम अनुपम कर स्नेह माफ गलती।
सुत जो कपूत होवे माता नही बदलती ।।

>>>>>>>>>>>>>>=५=>>>>>>>>>>>>>>

कुल देवतार्चना का परित्याग कर दिया है ।
      यह धाम साधनो का बय ब्यर्थं खो दिया है।।
अब भी कृपा करो न तब शरण पाहि पाहि ।
जगदम्ब छोड़ तेरा अबलम्बं और नाही।।

>>>>>>>>>>>>>>=६=>>>>>>>>>>>>>>

माँ पंगु तब सहारे गिरिबर शिखर को धावे ।
        सिर छत्र धर के जग में निसंक रंक सोबे।।
यह नाम जो अपर्णा विधि वेद में बखाने ।
       बस धन्य जन्म उनका जो सार तेरा जाने ।।

>>>>>>>>>>>>>>>=७=>>>>>>>>>>>>>

तन भस्म कंठ नीला गाल मुण्ड माल धारी।
       है हार शेष जिनके सिर भूमि भार धारी।।
तुजसी पतिब्रता से भूतेश जो कहाबे।
        पाणिग्रहण की महिमा संसार में सुहाबे।।

>>>>>>>>>>>>>>=८=>>>>>>>>>>>>>>

धन मोक्ष की न इच्छा बांछाँ न ज्ञान की है।
शशी मुख सुलोचनि के सुख की न मान की है।।
हिम शैल खण्ड पर जा जप साधना तुम्हारी।
        करता रहूँ भवानी जय जय शिबा तुम्हारी।।

>>>>>>>>>>>>>>>=९=>>>>>>>>>>>>>

उपचार सैकड़ो माँ मैंने किये नही है।
          रुखा है ध्यान मेरा धन पास में नही है।।
इस दीन हीन पॉबर पर  फिर भी स्नेह है तेरा।
              श्यामे सुअम्ब माता तू मानती है मेरा।।

>>>>>>>>>>>>>=१०=>>>>>>>>>>>>>>

जब जब तनिक भी दुर्गे जग आपदा सताबे।
           सुत बतस्ले भवानी तव तव तुम्हे मनाबै।।
शठता न मान लेना दासानुदास तेरा।
           प्यासे दुर्भिक्षितो को विश्वाश एक तेरा।।

>>>>>>>>>>>>>>=११=>>>>>>>>>>>>>

करुणा मयी भुला कर त्रुटि दुःख टालती हो।
          घनघोर आपदायें झट् तोड़ डालती हो ।।
आश्चर्य क्या करू में तुमको कहा सुनानी।
      परिपूर्ण तम हो जननी तेरी अखत कहानी।।

>>>>>>>>>>>>><१२><>>>>>>>>>>>>>

पापी न मुझसा कोई तुम पाप हारिणि हो।
    सब दुःख नाशनी हो सुखशांति कारणी हो।।
तुम हो दयामयी माँ समुचित विचार करना।
देकर प्रसाद मुझको भव सिंधु पार करना।।
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>>>>>>>>>>भैरव जी का ध्यान >>>>>>>>>
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कर कलित कपाला कुंडली दंड पाणि।
तरुण तिमिर नीलो व्याल यग्नोपबिती।।
क्रतु समय सापर्या विग्नविच्छेदु हेतु।
जयति जय बटुक नाथ:सिद्धिदा साधकानां।।
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<<<<<<<<<<<<<<विशेष<<<<<>>>>>>>><<<<>>>>>><<<<-------->>>>>>>>>>>>>

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Tuesday, 27 September 2016

1 अक्टुम्बर 2016 घट स्थापना महुर्त

इस वर्ष नवरात्री पूजन 1 अक्टूबर 2016 से प्रारम्भ है। उस दिन प्रथम नवरात्र (प्रतिपदा) है। नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री के रूप में विराजमान होती है। उस दिन कलश स्थापना के साथ-साथ माँ शैलपुत्री की पूजा होती हैऔर इसी पूजा के बाद मिलता है माँ का आशीर्वाद।
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      कलश स्थापना और पूजा का समय
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भारतीय शास्त्रानुसार नवरात्रि पूजन तथा कलशस्थापना आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के पश्चात १० घड़ी तक 

   घट स्थापना -   प्रात:7:49 से  9:18 तक चौघड़िया महुर्त

प्रतिपदा तिथि आरम्भ

1 अकुटुंबर को प्रात: 5:41से

प्रतिपदा तिथि समाप्त

2 अक्टुम्बर को प्रात: 7:45 तक

अथवा अभिजीत मुहूर्त में करना चाहिए। कलश स्थापनाके साथ ही नवरात्र प्रारम्भ हो जाता है।

यदि प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र  हो तथा वैधृति योग हो तो वह दिन दूषित होता है।

इस बार 1 अक्टूबर 2016 को प्रतिपदा के दिन न हीं चित्रा नक्षत्र है तथा न हीं वैधृति योग है

परन्तु शास्त्र यह भी कहता है की यदि प्रतिपदा के दिन ऐसी स्थिति बन रही हो तो उसका परवाह न करते हुए अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना तथा नवरात्र पूजन कर लेना चाहिए।

निर्णयसिन्धु के अनुसार —

सम्पूर्णप्रतिपद्येव चित्रायुक्तायदा भवेत। वैधृत्यावापियुक्तास्यात्तदामध्यदिनेरावौ।।
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अभिजितमुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते।

अर्थात अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना करना चाहिए।

भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना श्रेष्ठ होता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार

1】मिथुन,  ये लग्न रात्रि 12 बजे के बाद आएगी तंत्र साधना के लिए ठीक है

2】कन्या, लग्न प्रात:6:20 से 7:30 तक घट स्थापना के लिए ठीक   चौघड़िया  नही है

३】धनु  लग्न दोपहर 11:49सेअभिजित महुर्त में धनु लग्न है । घट स्थापना के लिए सवश्रेस्ट महुर्त

४】तथा कुम्भ  लग्न 3:55 से द्विस्वभाव राशि है।  घट स्थापना महुर्त

अतः इन्ही लग्नो में पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए।

1 अक्टूबर 2016 प्रतिपदा के दिन हस्त नक्षत्र और ब्रह्म योग होने के कारण सूर्योदय के बाद तथा अभिजीत मुहूर्त में घट/कलश स्थापना करना चाहिए।

प्रथम(प्रतिपदा) नवरात्र हेतु पंचांग विचार

दिन(वार) – शनिवार
तिथि – प्रतिपदा
नक्षत्र – हस्त
योग – ब्रह्म
करण – किंस्तुघ्न
पक्ष – शुकल
मास – आश्विन

लग्न – धनु (द्विस्वभाव) लग्न समय – 11:33 से 13:37 मुहूर्त – अभिजीत मुहूर्त समय –
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************************************* विशेष :::::::::

इस वर्ष अभिजीत मुहूर्त (11:46 से12:34) जो ज्योतिष शास्त्र में स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया धनु लग्न में पड़ रहा है अतः धनु लग्न में ही पूजा तथा कलश स्थापना करना श्रेष्ठकर होगा।
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सम्पर्क सूत्र 

पंडित :परमेस्वर दयाल शास्त्री 

तिलक चोक मधुसुदंगड 

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